बयाना एवं खानवा युद्ध में आमेर महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा

 

आमेर महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा

बयाना युद्ध एवं खानवा युद्ध

बयाना का युद्ध :

बयाना के युद्ध में राजपूतों ने बाबर को दी थी करारी शिकस्त, युद्ध में राजपूतों का पराक्रम देखकर पूरी मुगल सेना में मच गया था हाहाकार

21 अप्रेल 1526 : पानीपत के मैदान में बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच हुए युद्ध में बाबर की निर्णायक जीत से दिल्ली पर बाबर का शासन हो गया। इब्राहिम लोदी की विशाल सेना भी बाबर के अधीन आ गई थी। अब बाबर की नजर राजपुताना पर थी। बाबर ने बयाना के किले पर अधिकार कर लिया जो मेवाड़ की सीमा में था । यह राणा सांगा को सीधे तौर पर चुनौती थी।
विदेशी आक्रांता बाबर को हिन्द से खदेड़ने के लिए राणा सांगा ने राजपूतो को संगठित करने के लिए पाती परवन परम्परा का निर्वहन किया। राणा सांगा के निमन्त्रण को स्वीकार करके सभी प्रमुख राजपूत शासक सैन्य शक्ति सहित राणा सांगा के सहयोग के लिए बाबर का मुकाबला करने को रणभूमि में पहुँच गये थे। आमेर से राणा सांगा के बहनोई महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा अपने मुख्य सरदारों एवं सैन्य शक्ति सहित रणभूमि में पधारे। 
फरवरी 1527 राणा सांगा के नेतृत्व में संयुक्त राजपूत सेना ने बाबर की मुगल सेना पर आक्रमण किया। 16 फरवरी 1527 को हुए बयाना के युद्ध में राजपूतो की विजय हुई। बयाना के किले पर राणा सांगा ने अधिकार कर लिया। मुगल सेना को बुरी तरह से खदेड़ दिया गया। इस हार से मुगल सेना का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था और बचे हुए मुगल सैनिक जान बचाकर भाग गए थे।
इस युद्ध में पराजित होने के बाद बाबर ये समझ चुका था कि अबकि बार बाबर का मुकाबला हिन्द की उन फौलादी चट्टानों से हुआ है जिन्होंने सदियों से भारत की सीमाओ की रक्षा की है जिन्हें बल से जीतना असम्भव है इसलिए बाबर ने छल को भी सहारा बना लिया। मुगल सेना बयाना में  राजपूतों से करारी शिकस्त खाकर बड़ी मुश्किल से प्राण बचा कर भागी थी जिस कारण मुगल सेना वापस राजपूतों का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी। महाराणा सांगा के नाम से बाबर की सेना में थोड़ा भय था। जब यह बात बाबर को पता चली तो उसने सेना को प्रेरित करने की योजना बनाई। इस योजना के तहत बाबर ने शराबबंदी की और सभी शराब के पात्रों को तुड़वा दिया। बाबर ने मुगल सेना को कर माफी का लालच दिया एवं अनेक प्रयत्न किये तब भी मुगल सेना के कमजोर होसले को देख बाबर ने मुगल सेना को जिहाद (धर्म युद्ध ) का नारा देकर फिर से तैयारिया प्रारम्भ कर दी। 


BATTLE OF KHANWA

खानवा का युद्ध :

बाबर के खिलाफ राजपूताने की सभी रियासते एक हो चुकी थी। राजपूतो ने बाबर को बयाना के युद्ध मे बुरी तरह पराजित कर दिया था। बयाना युद्ध के एक महीने बाद फतेहपुर सीकरी से 10 मील दूर खानवा के मैदान में बाबर और राजपूतो की सेना में फिर से घमासान हुआ । आमेर से महाराजा पृथ्वीराज अपने पुत्रो गोपालजी कछवाहा आदि एवं कुटुंब सदस्यों जगमाल जी कछवाहा, शेखावत, नरुका सहित अपनी विशाल सेना लेकर राणा सांगा का साथ देने के लिए खानवा युद्ध मैदान में जा पहुँचे थे। 
इस युद्ध में बाबर के पास आधुनिक तोपखाना था वहीं राजपूतों के पास परंपरागत हथियार तलवार,भाले,धनुष थे। मुगलो की तोपो से राजपूतो की तलवारे टकरा रही थी बाबर की सेना तोपो से आग बरसा रही थी और राजपूत तोपो का सामना तलवार और भालो से कर रहे थे। फिर भी ये महासंग्राम राजपूतो के पक्ष में जा चुका था। महाराजा पृथ्वीराजजी कछवाहा हरावल दस्ते में आगे लड़ रहे थे। युद्ध मे महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा एवं कुंवर गोपालजी ने अदम्य शौर्य एवं वीरता का प्रदर्शन किया। 
मुगलो को बहुत नुकसान हो चुका था और राजपूतो की जीत निश्चित हो चुकी थी। पराजय की तरफ बढ़ रहे मुगल बौखलाकर छल कपट पर उतर जाते है। इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी (अफगान) एवं रायसेन का मुस्लिम शासक सलहदी खां जो कि युद्ध में पहले तो राणा सांगा की तरफ थे और अचानक ही युद्ध समय में बाबर द्वारा दिए प्रलोभन में आकर अपनी सेना सहित बाबर की सेना में जा मिले। इसलिए राजपूतों को अपनी युद्ध योजना बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा, यह भीतर घात राजपूतों के लिए खतरनाक साबित हुआ. राजपूत जहां युद्ध नीतियों का पालन करते थे वही मुगल तो युद्ध ही छल कपट से करते थे राजपूत निहत्थे पर वार नही करते थे वही मुगल पीछे से वार किया करते थे, राजपूतों की सेना पर तुलुगमा पद्धति अपना कर मुगलो ने रिज़र्व टुकड़ी द्वारा पीछे की ओर से आक्रमण करते हुए तोप के गोले बरसाना शुरू कर दिये। ऐसे किसी आक्रमण का राजपूतों को बिलकुल भी अंदेशा नहीं था फिर भी अपनी वीरता के बल पर राजपूतो की विजय होने वाली थी कि तभी इस घोर संग्राम में एक तीर राणा सांगा की आँख में जा लगा। 
राणाजी घायल हो गए तब महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा एवं उनके पुत्र गोपालजी कछवाहा राणा सांगा को पालकी में बैठा कर बसवा (दौसा) लाये थे। बसवा लाने का मुख्य कारण ये था कि बसवा खानवा के पास और आमेर की सीमा में सुरक्षित स्थान था। महाराजा पृथ्वीराजजी कछवाहा की निगरानी में राणा सांगा का बसवा में उपचार किया गया। स्वास्थ्य में सुधार हुआ और राणा सांगा फिर से युद्ध की तैयारियां प्रारम्भ करने का आदेश देते है  उपचार के पश्चात बसवा से वापस जाते समय कालपी (मध्य प्रदेश) नामक स्थान पर राणा सांगा के कुछ विश्वासघाती मेवाड़ के सरदारों द्वारा उन्हें जहर दे दिया गया। इसी के साथ मेवाड़ के महान राजपूत शासक महाराणा सांगा का जीवन समाप्त हो जाता है।
महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा भी खानवा युद्ध में बहुत घायल हो गए थे। संवत 1584 के महापुनीत कार्तिक मास में वैकुंठ द्वादशी को महाराजा पृथ्वीराज जी का वैकुण्ठ वास हुआ।


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"