महाराजा पृथ्वीराज द्वारा सनातन सम्प्रदायों को संरक्षण

आमेर महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा 


सनातन सम्प्रदायों को संरक्षण

आमेर रियासत में पावन गलता तीर्थ स्थल के कापालिक सम्प्रदाय के योगीराज चतुरनाथजी सनातन के महान संत थे जोकि महाराजा पृथ्वीराज जी के प्रथम धार्मिक गुरु थे। अपने गुरु के साथ महाराजा पृथ्वीराज जी अपने कुलदेवता श्री अम्बिकेश्वर महादेवजी के मंदिर में योग, साधना, ध्यान व समाधि लगाते थे 

मंदिर श्री तीर्थ गलता धाम


चतुरनाथ जी एवं कृष्णदास पयहारीजी के शास्त्रार्थ में पयहारीजी की जीत के पश्चात गलता गद्दी पर पयहारीजी विराजमान हुए एवं आमेर रियासत के गलता तीर्थ स्थल पर रामानुज सम्प्रदाय को महाराजा पृथ्वीराज जी ने सरंक्षण प्रदान किया। महाराजा एवं महारानी बालाबाई ने पयहारीजी को गुरु बनाया एवं सनातन के वैष्णव मत के अनुयायी बने।


galta ji tample jaipur
मंदिर श्री तीर्थ गलता जी धाम 

गुरु पयहारीजी ने प्रसन्न होकर महाराजा पृथ्वीराज जी को सीतारामजी एवं नृसिंहजी की चमत्कारी मूर्तियां दी थी और कहा था कि युद्धादि में सीतारामजी का रथ आगे रहने पर आपकी सदा विजय होगी  तब से नियम का पालन किया जाता रहा। आमेर / जयपुर के महाराजा के रथ के आगे सीतारामजी का रथ रहता था।  परम्परा अनुसार आमेर में सीतारामजी एवं नृसिंहजी की विधिवत पूजा भी होती आयी है। इस आशीर्वाद से कछवाहा सेना का विजय रथ सदैव बढ़ता ही रहा एवं आगे आमेर के  महाराजाओ ने पूरे भारत वर्ष में सनातन धर्म एवं संस्कृति की रक्षा की। भारत में हजारों मंदिरों का निर्माण करवाया। आमेर का कछवाहा राजवंश श्रीराम के ज्येष्ठ पुत्र महाराज कुश का वंशज है।

भक्तमाल आदि में महाराजा पृथ्वीराज जी एवं महारानी बालाबाई की अनेक कथाएं है जो उनके धर्म  परायणता के साथ साथ उनके द्वारा धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के  कार्यों को बताती है ।



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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"