सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा (भाग - 1)

 महान योद्धा श्री गोपाल जी कछवाहा 

(वीर शिरोमणि नाथाजी के पिताश्री)

भाग - 1 

सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा


आपका जन्म आमेर नरेश पृथ्वीराज जी कछवाहा की पटराणी बाला बाई राठौड़ जी (बीकानेर की राजकुमारी) के उदर से हुआ था।

आप बाल्यकाल से ही धर्मानुरक्त माता पिता के भक्त रहे। "नाथ वंश प्रकाश" (पद्य 4) के अनुसार गोपालजी ने कुँवर पदे ही अपनी योग्यता और वीरता का परिचय दे दिया था। कुँवर पदे ही गोपालजी ने अनेक युध्दों में विजय प्राप्त की। गोपालजी ने पठान सेना को भी पराजित किया एवं मुगल सेना को भी पराजित किया जिनका वर्णन अगले भागो में किया जाएगा।

श्री गोपालजी कछवाहा महान योद्धा, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, सनातन धर्म रक्षक एवं देशभक्त थे।

"नाथावत सरदारों का इतिहास" पृष्ठ 6 में लिखा है कि सम्वत 1584 में महाराजा पृथ्वीराज जी के परलोक पधारे पीछे उनके चौथे पुत्र गोपालजी को सामोद और मोहाणा की जागीर प्राप्त हुई।  बारह कोटड़ी में शामिल सामोद ठिकाने की राजगद्दी पर गोपालजी का राजतिलक हुआ।


गोपालजी के 3 विवाह हुए थे :

1️⃣पहली राणी सत्यभामा जादूणजी - 

करौली के राजा उध्दरण जी जादौन की सुपुत्री राजकुमारी ।

2️⃣दूसरी राणी रुक्मावती चौहाणजी - 

मोरा के राजा भीमदेव चौहान की सुपुत्री राजकुमारी।

3️⃣तीसरी राणी लाड़ कंवर मेड़तणी जी - 

मेड़ता के राजा राव जयमल मेड़तिया (राठौड़) की सुपुत्री /राव वीरमदेव जी की पौत्री / राव दुदा जी की प्रपोत्री थे। जयमल जी मेडतिया भक्त शिरोमणि मीरा बाई के भाई थे। जयमल जी ने चित्तोड़गढ़ के तीसरे साके का नेतृत्व किया था और वीरगति को प्राप्त हुए थे।


गोपालजी के पटराणी सत्यभामा जी थे। वीरशिरोमणि नाथाजी का जन्म राणी सत्यभामा जी के उदर से हुआ जिनके वंशज "नाथावत" है।


गोपालजी के 9 पुत्र थे -

1️⃣ वीरशिरोमणि नाथाजी - आपका जन्म राणी सत्यभामा जी के उदर से हुआ। आप गोपालजी के बड़े पुत्र होने के कारण उनकी विरासत के उत्तराधिकारी हुए। आपने तुर्कों के खिलाफ दशकों युद्ध लड़े थे, आपने गुजरात अभियान के दौरान गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को तलवार युद्ध में पराजित कर बन्धक बना लिया था। अजेय योद्धा रहे वीर शिरोमणि नाथाजी के वंशज "नाथावत" है  जिनका आगे के भागों में विस्तृत वर्णन किया जाएगा।

2️⃣ सुरजन जी 

3️⃣ बाघाजी - सिरसी बिंदायका विराजमान हुए, आपके वंशज 'बाघावत' है।

4️⃣ देवकरणजी - ठिकाना राणोली (टोंक) विराजमान हुए उनके वंशज 'देवकरणोत' है। आमेर रियासत के दीवान रहे। देवकरणजी की 12 खम्भो की भव्य छतरी एवं देवली राणोली में स्थित है। भासू , बीसलपुर सहित 12 ठिकाने टोंक जिले में है तथा अन्य 10 ठिकाने मिलाकर कुल 22 ठिकाने है।

5️⃣ तेजसीजी

6️⃣ मलैसीजी

7️⃣ बैरीसालजी

8️⃣ गोरखदासजी

9️⃣ रघुनाथजी

*श्री गोपालजी कछवाहा के सभी पुत्रों के वंशजो के गौरवशाली इतिहास का विस्तृत वर्णन आगे के भागों में किया जाएगा ।

सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा बाल्यकाल से ही धर्मानुरक्त माता पिता के भक्त रहे। "नाथ वंश प्रकाश" (पद्य 4) के अनुसार गोपालजी ने कुँवर पदे ही अपनी योग्यता और वीरता का परिचय दे दिया था। कुँवर पदे ही गोपालजी ने दशको युध्दों में विजय प्राप्त की। आपने अपने जीवन का ज्यादातर समय रणभूमि में शत्रुओं का दमन करने में बिताया।  गोपालजी ने तुर्क सेना को भी पराजित किया एवं मुगल सेना को भी पराजित किया जिनका वर्णन पिछले भागो में किया गया है। दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी को चाटसु के युद्ध में बुरी तरह पराजित करके खदेड़ दिया था और शिखरगढ़ के युद्ध में मुगलों को पराजित कर खदेड़ दिया। राणा सांगा के पक्ष में बयाना के युद्ध में वीरता का परिचय दिया जिसमे मुगल बादशाह बाबर को राणा सांगा के नेतृत्व वाली संयुक्त  राजपूत सेना ने पराजित करके खदेड़ दिया था। गोपालजी ने खानवा के युद्ध मे भी अदम्य साहस एवं वीरता का परिचय दिया , वे अपने पिता आमेर नरेश पृथ्वीराज कछवाहा के साथ युद्ध मे गए थे। घायल राणा सांगा को खानवा युद्ध भूमि से सुरक्षित निकाल कर आमेर के सरंक्षण में उपचार करवाने में पृथ्वीराज जी के सहायक रहे थे , महाराणा की रक्षा करते समय गोपाल दासजी घायल हो गए थे। 

गोपालदासजी ने नाहन के राजा को पराजित करके वहाँ की जनता को कुशासन से मुक्ति दिलाई। खण्डेला, टोडा आदि दशकों युध्दों में गोपालजी ने विजय प्राप्त की। गोपालदासजी ने शरणागत में आये को कभी भी रीते हाथ नही जाने दिया। 

जीवन पर्यंत रणभूमि में शत्रुओं का संहार करने वाले दशकों युध्दों के विजेता श्री गोपालदासजी "केटकी के युद्ध" में क्षत्रियधर्म का पालन करते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए।
श्री गोपालजी कछवाहा वीर शिरोमणि, महान योद्धा, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, सनातन धर्म रक्षक, प्रजापालक देशभक्त थे।
गोपालदासजी के वैकुण्ठवास के पश्चात आपके ज्येष्ठ पुत्र वीर शिरोमणि नाथाजी ( नाथावत शाखा के प्रवर्तक पुरुष) का सामोद की राजगद्दी पर राज्याभिषेक हुआ।


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  1. भाग - 1 : यहाँ क्लिक करे 
  2. भाग - 2 : यहाँ क्लिक करे 
  3. भाग - 3 : यहाँ क्लिक करे 
  4. भाग - 4 : यहाँ क्लिक करे


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"