महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा आमेर

 आमेर महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा 

(वीरशिरोमणि नाथाजी के दादोसा हुकुम)


आप महाराजा चन्द्रसेनजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। आपका आमेर राजगद्दी पर राजतिलक विक्रम संवत 1559 फाल्गुन कृष्ण पंचमी (17 जनवरी 1503) को हुआ। 

आप महापराक्रमी, महान हरि भक्त, कुशल प्रशासक, महान प्रजापालक राजा थे। "आमेर के राजा" में प्रसिद्ध इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद जी ने लिखा है कि  महाराजा पृथ्वीराज जी का नाम राजाओ के साथ साथ भगवान के भक्तों में भी बहुत प्रसिद्ध हुआ। आमेर के राजाओं में आप विशेष विख्यात हुए।


आमेर महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा


 महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा की महारानियाँ -

महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा के 9 रानियां थी। सभी रानियां तत्कालीन प्रमुख रियासतों की राजकुमारियां थी।

(1) महारानी 'अपूर्वदेवी 'बालाबाई" (राठोड़ जी) - राव लूणकरणजी बीकानेर की राजकुमारी
(2) महारानी पदारथदे (तँवरजी) - भगवन्तराव गांवड़ी की राजकुमारी
(3) महारानी भागवती (बड़गूजरजी) - देवती के राजा जैताकी राजकुमारी
(4) महारानी रूपावती (सोलंखणीजी) - राव लखानाथा टोडाकी राजकुमारी
(5) महारानी जाँबवती (सीसोदणी जी) - राणा रायमलजी उदयपुर की राजकुमारी
 (6) महारानी रमादे (निर्बाणजी) - रायसल अचला की राजकुमारी
(7) महारानी रमादे (हाड़ीजी) - रावनरवद बूँदी की राजकुमारी
(8) महारानी गौरवदे (निर्वाणजी) - धामदेव की राजकुमारी और 
(9) महारानी नरबदा (गौड़जी) - खैरहथ की राजकुमारी थी। 


 महाराणी राठौड़जी अपूर्वदेवी (बालाबाई) :- 

आप राव लूणकरणजी बीकानेर की सुपुत्री थे। बालाबाई महाराजा पृथ्वीराज जी के पटराणी थे। आमेर में 'बालाबाई की साल' नाम का महल है जहाँ जाते ही लोग नतमस्तक होते है। बालाबाई भी भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। पृथ्वीराज जी की प्रियतमा राणी 'बालाबाई' जी थे। जयपुर राज्य उनके परिवार से व्याप्त है। और उनके यशगौरव को बढ़ा रहा है। 


महाराणी सिसोदणीजी जाम्बवन्ती :- 

मेवाड़ महाराणा रायमलजी की सुपुत्री राजकुमारी जाम्बवन्ती (दामोदर कंवर) का विवाह आमेर महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा से हुआ था। आप मेवाड़ के महाप्रतापी, यशस्वी महाराणा सांगा की बहन थे। 

महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा ने प्रजाहित, सनातन धर्म  उत्थान, रियासत में सुरक्षा, शांति, विकास एवं अच्छे प्रबन्ध के लिए अनेक कार्य किये। "वीर विनोद" में लिखा है कि महाराजा पृथ्वीराजजी बड़े सीधे सादे हरि भक्त थे और प्रजापालक तथा सर्वप्रिय थे। 

सन्दर्भ : 

  • "आमेर के राजा" ,
  • "नाथावतो का इतिहास - हनुमान शर्मा"



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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"