सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा (भाग - 4 )

 

महान योद्धा श्री गोपाल जी कछवाहा 

(वीर शिरोमणि नाथाजी के पिताश्री)

भाग - 4 "क्षत्रिय गुणों से सुशोभित सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा"

सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा


आमेर नरेश पृथ्वीराज जी के सुपुत्र गोपालजी कछवाहा क्षत्रिय गुणों से सुशोभित, वीर, साहसी, प्रजापालक हुए एवं शरण में आये हुए को कभी खाली हाथ नही जाने देते थे।
इतिहासकार श्री हनुमान शर्माजी लिखते है कि उस समय हाजी खां पठान सबल उद्दंड और स्वच्छन्द था। उसने नारनोल के किले को कब्जे में करने के लिए उसे घेर लिया। वहाँ मजनूख़ाँ काकशाल किलेदार था। हाजी खां के घेरे को देख कर मजनुखाँ घबरा गया और किले में फँसे अपने परिवार की महिलाओं की रक्षा हेतु क्षत्रिय योद्धा गोपालजी से गुहार लगाई। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए शरणागत की रक्षार्थ एवं नारी सम्मान की रक्षा हेतु श्रीगोपालजी कछवाहा ने हाजी खां पठान के घेरे को तोड़कर मजनू ख़ाँ के परिवार को राजीखुशी बाहर निकलवा कर मजनू खां के पास सकुशल भिजवा दिया। उसके पश्चात हाजी ख़ाँ पठान किले में जा सका। 
मजनू ख़ाँ ने आमेर महाराजा की सराहना कर कृतज्ञता प्रकट की एवं सामोद नरेश श्री गोपालजी कछवाहा की वीरता एवं धर्मपरायणता की बहुत प्रशंसा की।  


 'टॉड राजस्थान' और 'आमेर के राजा' में लिखा है कि 'नाहन' बड़ा नगर था उसके 52 बुर्ज एवं 56 दरवाजे थे। वहाँ का शासक प्रजा पर जुल्म करता था और प्रजा की सुनवाई नही करता था जिससे वहाँ की प्रजा हैरान थी। उस शासक ने भूसा, चारा और तूस जैसी निकृष्ट चीजो पर भी 'कर' लगा रखे थे। वह आमेर के दूरस्थ क्षेत्रों में भी लूट मार करता ओर आमेर राज्य की भी हानि करता। 'नाहन' की जनता की अरदास पर आमेर ने नाहन पर चढ़ाई की।  आमेर महाराजा ने सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा के नेतृत्व में सेना भेजी, गोपालजी ने वहाँ के शासक को पराजित करके नाहन को मिट्टी में मिला दिया। नाहन को तोड़ फोड़ कर उजाड़ कर 'लवाण' कस्बे की स्थापना की गयी एवं लवाण को आमेर में मिला दिया गया। वहाँ से कुशासन को हटा कर सुशासन की स्थापना की एवं प्रजाहित के कार्य किये। इस प्रकार वहाँ की जनता को कुशासन से मुक्ति मिली।
इस विषय में एक कवि ने लिखा है कि 

"बावन कोट छप्पन दरवाजा ,बठे छ नाहण को राजा। 
तब बुड्यो राज नाहण को जद हासिल मांग्यो भूसा को।।


स्रोत - 
  1. 'नाथावतो का इतिहास' 
  2. 'टॉड राजस्थान'
  3. 'आमेर के राजा'

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"