चाकसू युद्ध में शेरशाह सूरी को परास्त करने वाले योद्धा

 महान योद्धा श्री गोपाल जी कछवाहा 

(वीर शिरोमणि नाथाजी के पिताश्री)


भाग - 2 "चाकसू युद्ध अभियान"

मोटा मरद गोपालजी, रण में चढ़िया सिंह समान। 

अफगानी  सेना  में  ज्यूँ ,  मचा_ घणा_ घमसाण।।


शेरशाह सूरी ने लगभग पूरे भारत की अनेक राजनीतिक शक्तियों का मानमर्दन किया था, लेकिन भारत मे ही एक वीर ऐसा था, जिसके आगे शेरशाह सूरी को उल्टे पांव भागना पड़ा। मारवाड़ में शेरशाह सूरी को एक मुट्ठी बाजरा तो मिला था, यहां तो शेरशाह को अपने जूते तक छोड़कर भागने पड़े।

शेरशाह सूरी,  हुमायूं को हराकर महाराजा मालदेव को दबाने के लिए मारवाड़ पर हमला करने जा रहा था, आमेर नरेश पृथ्वीराज जी कछवाहा के सुपुत्र गोपाल जी को इसकी सूचना मिली, कुछ ही कछवाहा सरदारों को साथ लेकर गोपाल जी ने चाटसू (चाकसू) के समीप शेरशाह की सेना पर ऐसा भंयकर हमला बोला कि पठान (अफगानी) सेना के परखच्चे उड़ गए । अफगानी ज्यादा थे और राजपूत कम, किंतु थे सब शूरवीर और साहसी। जीत का गुमान सदैव सिरपर रखकर चलने वाले पठानो के जान के लाले पड़ गए, कभी न युद्ध से मुँह मोड़ने वाले तुर्क भी गोपाल जी के नेतृत्व में कच्छवाह सेना के पराक्रम के आगे भयभीत होकर ऐसे भाग रहे थे, जैसे शेर को देखकर हिरण आंख बंद कर बस दौड़ लगाता है। शेरशाह बुरी तरह परास्त हुआ, और वापस लौट गया। इसके पश्चात शेरशाह में इतना भय हो चुका था कि वो कभी भी इस मार्ग से नहीं गुजरा।

ऐसे अनगिनत योद्धाओ की वीर गाथाओ से राजपुताना का इतिहास भरा है लेकिन इतिहासकारों और सरकारों की अनदेखी से गौरवशाली इतिहास के इन स्वर्णिम पन्नो द्वारा गर्व की अनुभूति करने से भारत का आम जनमानस वंचित है।


VIDEO :  click here  शेरशाह सूरी की अफगानी सेना पर सामोद नरेश गोपालजी कछवाहा के विजय अभियान का पद्य रचना में यशोगान।     



  संदर्भ :

  • १.ईस्वी संख्या 1939  में प्रकाशित हनुमान प्रसाद शर्मा जी के "जयपुर इतिहास के अंश
  • २."भारत भ्रमण" खण्डसः
  • ३."नाथावतो का इतिहास" पृष्ठ 46


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"