शिखरगढ़ का युद्ध (BATTLE OF SHIKHARGARH)

महान योद्धा श्री गोपाल जी कछवाहा 

(वीर शिरोमणि नाथाजी के पिताश्री)


भाग - 3 "शिखरगढ़ का युद्ध"

BATTLE OF SHIKHARGARH

दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के भाई हिन्दाल ने संवत 1590 में मुगल सेना लेकर शेखावाटी पर चढ़ाई की। तब आमेर से स्वयं महाराजा पूरणमल जी कछवाहा सेना लेकर राव रायमलजी शेखावत की सहायता के लिए पहुँचे। कछवाहा सेना के प्रधान सेनापति सामोद नरेश श्री गोपालजी कछवाहा युद्ध में महाराजा पुरणमलजी के साथ गए। शिखरगढ़ में कछवाहों एवं मुगलों के मध्य भीषण युद्ध हुआ । इतिहासकार श्री हनुमान शर्माजी लिखते है कि जब सभी राजा अपने महलों में रंग और गुलाल से बसन्त मना रहे थे उसी समय महाराजा पुरणमलजी अपने कछवाहा रणबाकुरों सहित रणभूमि में शत्रुओं के साथ रक्त से फाग खेल रहे थे इसी युद्ध में महाराजा पुरणमलजी शत्रुओं का संहार करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध में सामोद नरेश गोपालजी ने अद्भुत वीरता एवं पराक्रम दिखलाया और सैंकड़ो मुगलो का संहार करके युद्ध को नयी दिशा प्रदान की। संयुक्त कछवाहा सेना (आमेर के कछवाहा योद्धाओं एवं शेखावाटी के शेखावत योद्धाओं ) के सामने मुगल सेना पराजित होकर भाग खड़ी हुई। कछवाहा रणबाँकुरों द्वारा मुगल सेना को दूर तक खदेड़ दिया गया। इस प्रकार शिखरगढ़ के युद्ध में कछवाहा रणबाँकुरों ने मुगल सेना पर बड़ी विजय प्राप्त की। 

महापराक्रमी महाराव शेखाजी की वीरभूमि शेखावाटी पर लड़े गए "शिखरगढ़ युद्ध" में वीरगति को प्राप्त सभी कछवाहा रणबाँकुरों को बारम्बार नमन एवं श्रद्धांजलि।


विशेष : राव रायमल जी , शेखावत वंश परम्परा में शक्तिशाली और महत्वपूर्ण शासक हुए हैं। शेरशाह सूरी के पिता मिंया हसनखां ने इनकी सेना में कई वर्षों तक चाकरी की थी।


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"