वीर शिरोमणि श्री नाथाजी कछवाहा
(नाथावत वंश के प्रवर्तक पुरुष)
भाग - १
जिमि माया अरू ब्रह्म में , ज्ञानी गिणे न फेर।।
कुँवर श्री नाथाजी का जन्म सामोद नरेश श्री गोपालजी कछवाहा की राणी जादूणजी (करौली के राजा श्री उद्धरण पालजी जादौन की सुपुत्री राजकुमारी सत्यभामा जी) के उदर से विक्रम संवत 1582 में हुआ था। नाथाजी बाल्यकाल से ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी रहे। शस्त्र-शास्त्र, रणकौशल में पारंगत थे। बाल्यकाल से ही प्रजा से मोह रखते, प्रजा के बीच रहते और नाथाजी की लोकसेवाओं से प्रजा जन बहुत खुश थे। प्रजा का भी प्रारम्भ से ही नाथाजी से बहुत जुड़ाव रहा था। प्रजा से इस तरह के लगाव (प्रेम) के कारण ही जब कभी नाथाजी आमेर रियासत से बाहर रहते तो प्रजा जन कहते कि "हे नाथा, थारे बिना म्हे अनाथा"।।
क्षण समय बो बड़भागो, जिण जन्म लीयो श्री नाथाजी।
ढूंढाड़ी प्रजा रो प्यारो, बड़ो शूर-वीर वो नाथाजी।।
प्रजा रो प्यारो, राजदुलारो, राजकुंवर वो नाथाजी।
ढूंढाड़ धरा रो रखवाळो, धरणी रक्त सींचीयो नाथाजी।
तृण-तृण कण-कण जण-जण केहवे: "हे नाथा, थारे बिना तो म्हे अनाथा जी"।।
अनेको युध्दों में तुर्क शत्रुओं को बुरी तरह रौंदने वाले , प्रजावत्सल , धर्म के प्रति निष्ठावान श्री नाथाजी के लिए इतिहासकार श्री हनुमान शर्माजी लिखते है कि ईश्वर ने भी नाथाजी का नाम अमर करने के विधान बनाये थे।
सामोद नरेश श्री गोपालदासजी कछवाहा केटकी के युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए। उनके वैकुण्ठ बास हुए पीछे उनके ज्येष्ठ पुत्र वीर शिरोमणि नाथाजी कछवाहा का संवत 1621 में सामोद की गद्दी पर राजतिलक हुआ। उस समय आपकी अवस्था अड़तीस वर्ष की थी।
आपके दो विवाह हुए थे -
- प्रथम : राणी चौहान जी - बेदला (गंगराना) के राजा राव शेर सिंहजी चौहान की सुपुत्री राजकुमारी नोरंगदे।
- द्वितीय : राणी सोलंखणी जी - टोडाभींव के राजा रामदेवकरण जी सोलंकी की सुपुत्री राजकुमारी लछमावती।
वीर शिरोमणि नाथाजी के पुत्र -
- मनोहरदास जी : आपको पहले सामोद मिला ,आप सामोद गद्दी पर बिराजे। फिर हाड़ोता आये। इनकी भायप के वही 56 गावँ है जो नाथाजी के थे। इनके वंशज "मनोहरदासोत "कहलाते हैं।
- रामसहाय जी : आप मोरिजा के मालिक हुए और महाराज के मंत्री रहे। इनके भायप के 28 गाँव हैं।और इनके थाम्भे के 58 गाँव हैं। इनके वंशज "रामसहाय जी के" (रामसिंहोत) कहलाते हैं।
- केशोदास जी : आप विचूण के मालिक हुए। इनके वंशज "केशोदासोत" कहलाते हैं।
- बिहारीदास जी : आप भाव सिंह के अनुरोध से सामोद के मालिक हुए।
- जसवंत सिंह जी : आप जसूँता बैठे। भूतेड़ा, मुंडोता वाले इन्ही के वंशज हैं।
- द्वारकादास जी
- श्यामदास जी
- बनमाली जी
*रणभूमि में अल्पायु ही वीरगति को वरण करने आदि कारणों से श्री द्वारकादासजी, श्यामदासजी, श्री बनमालीजी अपुत्र रहे।
सन्दर्भ :
- नाथावतो का इतिहास- हनुमान शर्मा
- "मुमुक्त संग्रह" - माधवगोपालजी मंडाहर
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