नाथाजी का गुजरात सल्तनत पर विजय अभियान

 नाथाजी का गुजरात सल्तनत पर विजय अभियान

 भाग - 2 

नाथाजी का गुजरात सल्तनत पर विजय अभियान

वीर शिरोमणि नाथाजी अपने समय के बहुत बड़े कमांडो थे, नाथाजी ने 40 बड़े युद्ध पठानो तुर्को के खिलाफ लड़े थे, सभी केवल जीते ही नही, बल्कि शत्रु को बुरी तरह रौंद डाला था। इन्ही में से एक युद्ध तुर्को की गुजरात सल्तनत पर आक्रमण था। इस अभियान के तहत संवत 1617 में श्री नाथाजी कछवाहा ने अहमदनगर (अहमदाबाद) पर आक्रमण किया। 

इस युद्ध में नाथाजी ने अनेक मोर्चो पर बिना सेना के भी बाहुबली फ़िल्म की तरह अकेले ही गुजरात सल्तनत में बहुत बड़ी तबाही फैलाई थी, नाथाजी ने सुल्तान मुजफ्फर शाह की फौजी ताकत तोड़ने में अपना अद्भुद युद्ध कौशल दिखलाया। नाथाजी ने तुर्क सल्तनत में भारी तबाही करने के पश्चात वहां के सुल्तान मुजफ्फर शाह को घेर लिया। नाथाजी का सुल्तान से तलवार युद्ध हुआ  उस भयानक लड़ाई में वीर क्षत्रिय नाथाजी का सुतीक्ष्ण खड्ग टूट गया तो भी वह रीते हाथ पीछे नही फिरे बल्कि स्वयं निहत्थे होते हुए भी मुजफ्फर शाह को पूर्ण पराजित करने तक युद्ध भूमि में अड़िग रहे। निहत्थे नाथाजी ने शस्त्रधारी मुजफ्फर शाह को मल्ल युद्ध द्वारा बुरी तरह परास्त करके उसे बंदी बना कर ले आये और कारागार में डाल दिया। गुजरात जैसी बड़ी एवं ताकतवर सल्तनत को बर्बाद कर देने एवं सुल्तान को इस प्रकार बुरी तरह परास्त करके बंदी बना लेने से तुर्कों में नाथाजी के नाम का खौफ पैदा हो गया था और नाथाजी का विजय रथ लगातार बढ़ता ही रहा 

इस विजय के पश्चात नाथाजी की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल गयी। नाथाजी की वीरता और युद्धकौशल का गुणगान भारतीय इतिहासकारों के साथ साथ तुर्क एवं मुग़ल इतिहासकारों ने भी बहुत किया है। 


बिन फौजा ही तोड़ दिया तुर्का रो अभिमान।

तुरक राज ने ध्वस्त करिया, नाथाजी महान।।


यहीं से गुजरात सल्तनत का पतन प्रारम्भ हो गया। कुछ समय पश्चात मुजफ्फर शाह कारागार से तो भागने में सफल हो जाता है। अंत मे नाथाजी के वापस आक्रमण करने की बात सुनकर ही भयाक्रांत होकर जूनागढ़ में मुजफ्फर शाह जहर खाकर अपने प्राण त्याग देता है।


'नाथाजी का गुजरात सल्तनत पर विजय अभियान' वीडियो प्रस्तुति 


सन्दर्भ :

  1. नाथावतो का इतिहास - श्री हनुमान शर्मा
  2. नाथावत सरदारों का इतिहास 
  3. "शॉर्ट हिस्ट्री" पृ.५
  4. दारिया पुस्तक भण्डार के फारसी इतिहास में


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"