वीर शिरोमणि नाथाजी का "खम्भात विजय अभियान"
खम्भात विजय अभियान
बात उस समय की है जब गुजरात पर तुर्क अत्याचार चरम सीमा पर था और तुर्कों का विनाश भी निकट आ चुका था। दिग्विजयी, अजेय योद्धा, महान सेनानायक वीरशिरोमणी नाथाजी कछवाहा गुजरात सल्तनत को जीत कर गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह को बन्दी बनाने के पश्चात अनेक छोटे बड़े तुर्क शासकों को परास्त करते हुए खम्भात पहुँचे। उस समय खम्भात पर कुख्यात मुहम्मद हुसैन का शासन था जिसने आस पास के बड़े भू-भाग पर आतंक मचा रखा था। उसके द्वारा जनता का बड़े स्तर पर शोषण एवं ब्राह्मणों पर धार्मिक अत्याचार अधिक किये जा रहे थे।
आमेर के कछवाहा योद्धाओ ने खम्भात पर आक्रमण कर तुर्क शत्रु दल को बुरी तरह रौंद डाला। इस युद्ध अभियान में नाथाजी ने अपने सुतीक्ष्ण खड्ग के भीषण प्रहार से कुख्यात मुहम्मद हुसैन का सिर काटकर वहाँ की जनता को तुर्कों के अत्याचारों से मुक्ति दिलायी थी। नाथाजी ने ऐसे तुर्क आक्रमणकारियों का संहार करके धर्म की स्थापना में बहुत बड़ी भूमिका निभायी थी। तुर्कों द्वारा खंडित अनगिनत मन्दिरों का जीर्णोद्धार एवं देव प्रतिमाओ की प्राण प्रतिष्ठा आमेर के कछवाहो द्वारा करवायी गयी।
नाथाजी की इस विजय के लिए नाथावंशप्रकाश में चन्दकवि ने लिखा है कि :
"नाथा की सुयश गाथा पहुँची चहुँ दिस निधि पाथ"।।
इसी विजय क्रम में महाराजाधिराज श्री मान सिंह आमेर ने तलवार की धार पर तुर्क सत्ता को पराजित कर द्वारका नगरी को तुर्कों से स्वतन्त्र करवा कर भगवान द्वारकाधीश जी मन्दिर को वापस बनवाया था। इन धर्म की रक्षार्थ लड़े गये युद्धों में कछवाहा सेना के सेनानायक नाथाजी रहे।
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सन्दर्भ -
- नाथावतो का इतिहास - हनुमान शर्मा
- नाथावंशप्रकाश
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