ग्वालियर, चम्बल, ऐसाह गढ़ी का तोमर/तंवर राजवंश

 ग्वालियर, चम्बल, ऐसाह गढ़ी का तोमर वंश
PART-2

दिल्ली छूटने के बाद वीर सिंह तंवर ने चम्बल घाटी के ऐसाह गढ़ी में अपना राज स्थापित किया जो इससे पहले भी अर्जुनायन तंवर वंश के समय से उनके अधिकार में था, बाद में इस वंश ने ग्वालियर पर भी अधिकार कर मध्य भारत में एक बड़े राज्य की स्थापना की, शाखा ग्वालियर स्थापना के कारण ग्वेलेरा कहलाती है ग्वालियर का राज्य इन्हें अपने मामा कछवाहा राजा द्वारा भेंट किया गया था ग्वालियर के इस विश्वप्रसिद्ध किले में भी तोमर राजपूत शासको ने अनेक निर्माण कार्य करवाये थे. यह क्षेत्र आज भी तंवरघार कहा जाता है और इस क्षेत्र में तोमर राजपूतो के 1400 गाँव कहे जाते हैं




वीर सिंह के बाद उद्दरण, वीरम, गणपति, डूंगर सिंह, कीर्तिसिंह, कल्याणमल और राजा मानसिंह हुए

राजा मानसिंह तोमर बड़े प्रतापी शासक हुए, उनके दिल्ली के सुल्तानों से निरंतर युद्ध हुए उनकी नो रानियाँ राजपूत थी, पर एक दीनहींन गुज्जर जाति की लडकी मृगनयनी पर मुग्ध होकर उससे भी विवाह कर लिया था, जैसा कि सभी को विदित है कि गुज्जर जाति का मुख्य कार्य पशुपालन एवं दुग्ध विक्रय का था अतः मृगनयनी भी पशुओ का दूध बेचने का कार्य करती थी, जिसे रनिवास की रानियों ने महल में स्थान देने से मना कर दिया था, जिसके कारण मानसिंह ने गुज्जर जाति की होते हुए भी मृगनयनी गूजरी के लिए अलग से ग्वालियर में गूजरी महल बनवाया. इस गूजरी रानी पर राजपूत राजा मानसिंह इतने आसक्त थे कि गूजरी महल तक जाने के लिए उन्होंने एक सुरंग भी बनवाई थी, जो अभी भी मौजूद है पर इसे अब बंद कर दिया गया है। इतिहास के पन्नों में ये प्रेम कहानी सदा के लिए अमर हो गयी

मानसिंह के बाद विक्रमादित्य राजा हुए, उन्होंने पानीपत की लड़ाई में अपना बलिदान दिया उनके बाद रामशाह तोमर राजा हुए, उनका राज्य 1567 ईस्वी में अकबर ने जीत लिया इसके बाद राजा रामशाह तोमर ने मुगलों से कोई संधि नहीं की और अपने परिवार के साथ महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के पास आ गए, हल्दीघाटी के युद्ध में राजा रामशाह तोमर ने अपने पुत्र शालिवाहन तोमर के साथ वीरता का असाधारण प्रदर्शन कर अपने परिवारजनों समेत महान बलिदान दिया, उनके बलिदान को आज भी मेवाड़ राजपरिवार द्वारा आदरपूर्वक याद किया जाता है

मालवा में रायसेन में भी तंवर राजपूतो का शासन था, यहाँ के शासक सिलहदी उर्फ़ शिलादित्य तंवर राणा सांगा के दामाद थे और खानवा के युद्ध में राणा सांगा की और से लडे थे, कुछ इतिहासकार इन पर राणा सांगा से धोखे का भी आरोप लगाते हैं ,पर इसके प्रमाण पुष्ट नही हैं, सिल्ह्दी पर गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने 1532 ई. में हमला किया, इस हमले में सिलहदी तंवर की पत्नी जो राणा सांगा की पुत्री थी उन्होंने 700 राजपूतानियो और अपने दो छोटे बच्चों के साथ जौहर किया और सिल्हदी तंवर अपने भाई के साथ वीरगति को प्राप्त हुए

बाद में रायसेन को पूरनमल को दे दिया गया, कुछ वर्षो बाद 1543 ई. में रायसेन के मुल्लाओ की शिकायत पर शेरशाह सूरी ने इसके राज्य पर हमला किया और पूरणमल की रानियों ने जौहर कर लिया व पूरणमल वीरगति को प्राप्त हुए, इस प्रकार इस राज्य की समाप्ति हुई


राजपूताने में तंवर ठिकाने -


  • ढूंढाड़ में स्थित तंवरावाटी और तंवर ठिकाने -

दिल्ली में तोमरो के पतन के बाद तोमर राजपूत विभिन्न दिशाओ में फ़ैल गए। एक शाखा ने उत्तरी राजस्थान के पाटन में जाकर अपना राज्य स्थापित किया जो की जयपुर रियासत का एक भाग था। ये अब 'तँवरवाटी'(तोरावाटी) कहलाता है और वहाँ तँवरों के ठिकाने हैं। मुख्य ठिकाना पाटण का ही है, एक ठिकाना खेतासर भी है तँवरवाटी के तंवर राजपूतों का जयपुर रियासत में महत्वपूर्ण स्थान रहा है, सभी प्रमुख युद्धों में भी अहम भूमिका रही है

  • मारवाड़ में तंवर ठिकाने -

इनके अलावा पश्चिमी राजस्थान के पोखरण में भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं, बाबा रामदेव तंवर वंश से ही थे जो बहुत बड़े संत माने जाते हैं आज भी वो पीरो के पीर के रूप में पूजे जाते हैं। जो सांप्रदायिक एकता का बड़ा उदाहरण है यहाँ हिन्दू और मुस्लिम भक्त बड़ी संख्या में आते है। बाबा रामदेव को 'पीरो का भी पीर' कहा जाता है

  • मेवाड़ में तंवर ठिकाने -

मेवाड़ में भी तंवर राजपूतो के कई ठिकाने हैं जिनमे बोरज तंवरान एक महत्वपूर्ण ठिकाना रहा है


इनके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में बेजा ठिकाना और कोटि जेलदारी, बीकानेर में दाउदसर ठिकाना, mandholi जागीर भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं धौलपुर की स्थापना भी तंवर राजपूत धोलनदेव ने की थी। 18 वी सदी के आसपास अंग्रेजो ने प्रसन्न होकर जाटों को धौलपुर दे दिया। ये जाट गोहद से सिंधिया द्वारा विस्थापित किये गए थे और पूर्व में इनके पूर्वज राजा मानसिंह तोमर की सेवा में थे और उनके द्वारा ही इन्हें गोहद में बसाया गया था। अभी भी धौलपुर में कायस्थपाड़ा तंवर राजपूतो का ठिकाना है।


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"