भारत में धर्म युद्ध का प्रारम्भिक काल

महाराजा मान सिंह आमेर 

MAHARAJA MAN SINGH of AMER 

PART - 1  


अगर हमे महाराजा मानसिंह का इतिहास समझना है,  तो भारत मे इस्लाम आगमन के पूर्ण इतिहास को ही पढ़ना होगा। 

7वी शताब्दी के मुहम्मद कासिम से लेकर आजतक का इतिहास नही भी पढ़ें, तो कम से कम मुहम्मद गजनवी के इतिहास से तो भारत का इतिहास समझना ही होगा, हमे यह बात समझनी होगी कि मुगलो के आने से पहले ही भारत के गले मे इस्लाम नाम का फंदा पूरी तरह कसा जा चुका था ।। और मुगलों के आने से पहले ही भारत में क्या हालात बन चुके थे...


मुहम्मद गौरी के नाम से हम जिसे जानते है, यह "घोरी" सुल्तानवंश से था। "घोरी राजवंश " की स्थापना " आमिर सूरी " ने की थी। यह घोरी राजवंश 1011 ईस्वी तक बौद्ध था, 1011 में "घोरी राजवंश" ने इस्लाम कबुल किया ।। 

" दरअसल जिसे हम मुहम्मद गौरी या शहाबुद्दीन नाम से जानते है, उसका असली नाम " शहाबुद्दीन सूरी " था ।। "भारत के इतिहास में कई सूरी हुए है :- जैसे शेरशाह सूरी, हाकिम खान सूरी .... ।।" 


शहाबुद्दीन सूरी उर्फ मुहम्मद गौरी ने 1175 ईस्वी में मुल्तान पर कब्जा किया। मुल्तान में इस समय शिया मुसलमानों का कब्जा था, 894 ईस्वी से शिया लोग मुल्तान पर जबरन कब्जा किये हुए थे। शिया राजवँश भी पहले कभी हिन्दू ही था । इनके पूर्वजो को भी तलवार की धार पर इस्लाम कुबूल करवाया गया था


इसके बाद मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी भाटी राजपूतो के राज्य "उच" की और आगे बढ़ा । यहां भाटी शासकों को धोखे छल - कपट का सहारा लेकर मार डाला गया ।

अब शहाबुद्दीन सूरी की नजर गुजरात पर थी, उसने गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन को लूटना चाहा ।।  चालुक्य राजपूत वंश उस समय पाटण का शासक हुआ करता था, जिसपर इस समय भीमदेव द्वितीय नाम का राजपूत राजा शासन कर रहा था । पहली बार मे मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी को कोई सफलता नही मिली , बल्कि उसे भारत की सीमा के बाहर निकालकर रगेद रगेद कर मारा गया ।। इस मार से मुहम्मद गौरी इतना डर गया कि उसने अगले 20 वर्षो तक भारत की तरफ नजर उठाकर भी नही देखी । केवल भीमदेव नाम से ही गौरी में खौफ पैदा हो गया था

शहाबुद्दीन सूरी को जब राजपूत राज्यो से कमरतोड़ पिटाई मिली, तब उसने राजपूत राज्यो से ध्यान हटाकर मुस्लिम शासकों से ही पंजाब छीनने का निर्णय किया, 1178 ईस्वी में उसने पेशावर पर चढ़ाई की, और उसे गजनवियों से छीन लिया ।।

1181 ईस्वी में शहाबुद्दीन सूरी ने " खुसरो मलिक " से लाहौर छीन लिया। 1182 ईस्वी में उसने कराची पर धावा बोल दिया ।। 1184 ईस्वी में मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी ने पंजाब को एक बार पुनः मसल कर रख दिया ।।


1186 ईस्वी में मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी ने सरहिंद का किला भी फतेह कर लिया । यह सीधे सीधे राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान को चुनोती थी ......  पृथ्वीराज चौहान बहुत से राजपूत राजाओ की सेनाएं लेकर सरहिंद पहुंचे, मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी ने अली किरमाख को सरहिंद का किलेदार बनाया था, सरहिंद पर हिन्दुओ के घेराव की खबर सुनकर शहाबुद्दीन सूरी भी खुद सेना सहित रवाना हुआ ।। इस युद्ध मे मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी बाल बाल मरते मरते बचा ।

यहां पृथ्वीराज चौहान 13 महीनों तक सरहिंद के किले पर लड़ता रहा, ओर फतेह हासिल की ।


1192 ईस्वी में मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी 70 साल इस्लामी योजना को जामा पहनाने वाला था । उसने 1,20,000 जंगी सवार लेकर पृथ्वीराज चौहान पर चढ़ाई की । पृथ्वीराज की राजधानी अजमेर, सवालक, हांसी, सरस्वती वगैरह को मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी ने फतेह किया ।। इसके बाद शहाबुद्दीन सूरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को यहां का किलेदार घोषित करके स्वयं गजनी लौट गया । 


विशाल सेना के बल पर कुतुबुद्दीन ने दिल्ली, कोयल, मेरठ आदि प्रदेशो को जीत लिया ।। 1194 ईस्वी में मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी एक बार पुनः भारत आया, यहां उसने बनारस, चंदवाल आदि क्षेत्रों को जीतते हुए, भारत के सबसे बड़े राजा जयचन्द्र गहरवार को भी शिकस्त दे डाली । इसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक, जो मुहम्मद गौरी का गुलाम था, वह दिल्ली का पहला मुस्लिम सुल्तान बना, जिसके राज्य की सीमाएं लाहौर से लेकर बंगाल तक थी ।।


मुहम्मद गौरी के बाद से भारत के चप्पे चप्पे पर इस्लामी सभ्यता कायम हो गयी। इस्लाम का फंदा भारत के गले मे डल चुका था , जो दिन-ब-दिन कसता ही जा रहा था । 


मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी को भारत में सफलता मिलने के कई कारण थे । सबसे बड़ा कारण था, आल्हा-ऊदल एवं जयचन्द के साथ पृथ्वीराज चौहान के युद्ध .... साथ ही पृथ्वीराज चौहान के सम्बंध गुजरात के राजाओ के साथ भी प्रिय नही थे । भारत के राजाओ की आपसी फूट ने शहाबुद्दीन सूरी को पनपने का मौका दे ही दिया ||


शहाबुद्दीन सूरी को लंबे समय तक जिसने रोक रखा था, उसमे एक नाम आमेर के कछवाहा महाराजा " पजबन देवजी" का भी आता है ।। इनके बारे में कहा गया है कि पजबन देवजी ने ही पाटण में बघेलों को और बुन्देलखण्ड में चंदेल राजाओ एवं बनाफरो को परास्त किया था , पजबन देवजी ने ही महोबा को चौहानों के राज्य में मिला दिया था, खैबर पख्तूनख्वा के दर्रो में इन्होंने मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी को कई बार हराया था, और गजनी तक उसका पीछा किया था ......


टॉड राजस्थान में लिखा है :- पृथ्वीराज चौहान द्वारा संयोहिता हरण के समय पजबनदेव जी ने बड़ी वीरता का परिचय दिया था । इस युद्ध मे पजबन देवजी ने दोनों हाथों में शस्त्र लेकर शत्रुओ का संहार किया ।। रणभूमि में चारो ओर ढाल तलवारों की खटखट मच गई थी, पजबन देव जी खून में तैरते हुए, और नरमुंडों से टकराते हुए युद्ध कर रहे थे ।। अंत मे 400 शत्रुओ ने एक साथ मिलकर पजबनदेव जी को घेर लिया, और महाराज वीरगति पाकर पंचतत्व में विलीन हुए ।। 

पजबन देवजी की मृत्यु पर विद्वानों ने कहा :- अब हिन्दुओ की ढाल टूट चुकी है, अब हमारे अच्छे दिन खत्म हुए ।। और हुआ भी यही ..... पूरे भारत पर इस्लामी सभ्यता का परचम फहर चुका था ।।



और यह परचम तब तक लहराता रहा, जब तक पजबनदेव जी के ही वंशज राजा मानसिंह ने विदेशी ध्वज को उतारकर, उसके स्थान पर पचरंगा फहरा नही दिया .....

अगली पोस्ट में आप पढ़िए .... मुहम्मद शहाबुद्दीन सूरी के भारत मे स्थापित होने के बाद, भारत के प्रत्येक राज्य के क्या हाल थे ???


पूरे भारत का इतिहास जाने बिना राजा मानसिंह का महत्व समझ नही आ सकता । क्योकि जो राजा भारत की प्रत्येक दिशा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका हो, उनका इतिहास जानने के लिए, पूरे भारत का ही इतिहास जानना होगा ....।।


साभार - गुरूजी 


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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"