पानरवा का सोलंकी राजवंश Solanki Dynasty of Panarwa

पानरवा के सोलंकी शासकों का इतिहास
(History of Solanki Rulers of Panarwa)

Coat of Arms of Panarwa पानरवा का राजचिन्ह
(Coat of Arms of Panarva)


मेवाड़ रियासत का दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र भोमट कहलाता है। ईडर, सिरोही, गोगुंदा, झाड़ोल आदि के बीच अरावली पर्वतमाला के सघन वनों से छाये इस पहाड़ी क्षेत्र भोमट पर 12वीं सदी तक भीलों (जनजाति) की कबीलाई व स्वायत्त सत्ता थी। विभिन्न कबीलों में विभाजित आदिवासी समाज आपस में लड़ते रहते थे और सघन व दुर्गम क्षेत्र होने के कारण आसपास के बड़े राज्यों के लिए यह क्षेत्र विशेष आकर्षण का क्षेत्र भी नहीं था। 12वीं सदी के बाद यहाँ राजपूतों की विभिन्न खापों का प्रवेश प्रारम्भ होता है और धीरे धीरे राजपूत शासकों की अपनी स्वतंत्र सत्ता इस क्षेत्र पर कायम हो जाती है। सर्वप्रथम यहाँ गुजरात से यदुवंशी क्षत्रिय आते है और पानरवा पर प्रथम राजपूत सत्ता कायम हो जाती है। इनके बाद चौहान राजपूतो की बगड़िया शाखा का प्रवेश हुआ और उन्होंने पहाड़ा व जवास क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। 1398 ईस्वी में यहाँ चौहान राजपूतों की एक अन्य शाखा सोनिगरा का ईंडर की तरफ से प्रवेश हुआ और उन्होंने जूड़ा कोटड़ा पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। 1478 ईस्वी में सोलंकी राजपूतों का इस क्षेत्र में प्रवेश हुआ। 1299 ई. में गुजरात से सोलंकी राजपूतों का शासन समाप्त होने के बाद वे देश के विभिन्न भागों में बिखर गये। उनमें से एक शाखा भिणाय की तरफ आई जिसे राणकिया शाखा कहा गया। उसी राणकिया शाखा के रायमलजी के नेतृत्व में कुछ सोलंकी सरदार सिरोही रियासत के लास गाँव के निवासी बन गये। 1477- 78 ईस्वी में इनके पास से सिरोही का लास गांव भी छूट गया और इनमें से अधिकांश सोलंकी राजपूत मेवाड़ के देसूरी क्षेत्र में आ गए। कालान्तर में अनेक सोलंकी राजपूत अक्षयराज जी के नेतृत्व में भोमट क्षेत्र में आये और पानरवा के यदुवंशी राजपूत शासक जीवराज से संघर्ष किया, इस युद्ध में जीवराज पराजित हुआ और मारा गया। इस विजय के पश्चात 1478 ई. में पानरवा पर सोलंकी राजपूतों का अधिकार हो गया।


PANARWA KE PRACHIN MAHAL


1. रावत अक्षयराज RAWAT AKSHAYRAJ -

रावत अक्षयराज पानरवा के प्रथम सोलंकी राजपूत शासक बने और इस प्रकार पानरवा में सोलंकी शासन की स्थापना हुई। भोमट के इस बीहड़ क्षेत्र के सभी राजपूत शासकों ने अपने स्वयं के पुरुषार्थ से भूमि को जीता और संकलित राज्य स्थापित किया, उन्हें किसी बड़े शासक (रियासत) द्वारा ये ठिकाने नहीं दिए गये अतः इन्हें भोमिया सरदार कहा गया इसी कारण यह 1550 मील क्षेत्रफल वाला भूभाग भोमट कहलाया।

अक्षयराज सोलंकी 'रावत' की उपाधि के साथ पानरवा के शासक बने।


2. रावत राज सिंह RAWAT RAJ SINGH -

 अक्षयराज के बाद राजसिंह अगले रावत बने। उनके तीन विवाह हुए - 

  1. राणी चावड़ा (भावनगर की चावड़ा राजपूत राजकुमारी) 
  2. राणी पंवार (सूत की पंवार राजपूत राजकुमारी)  
  3. राणी सिसोदिया (बेगुं की राजकुमारी - हमीर सिंह चुण्डावत की सुपुत्री)

 3. रावत महिपाल RAWAT MAHIPAL -

 इनके 3 विवाह हुए -  

  1. चतर कंवर जी पंवार
  2. राज कंवर जी देवड़ी 
  3. मोती कंवर जी सिसोदणी  


4. रावत हरपाल RAWAT HARPAL -

रावत महिपाल के बाद उनके पुत्र रावत हरपाल शासक बने। इसी समय 1567 ईस्वी में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। महाराणा उदयसिंह ने सामंतों के आग्रह पर चित्तौड़गढ़ को राव जयमल मेड़तिया एवं आमेट के पत्ता चुण्डावत आदि के जिम्मे सौंपकर सुरक्षित आवास हेतु पहाड़ों की ओर प्रस्थान किया। वे भोमट क्षेत्र में आये और रावत हरपाल का आतिथ्य स्वीकार किया। रावत हरपाल ने उनकी सुरक्षा व व्यवस्था का जिम्मा लिया। महाराणा उदयसिंह उनके आतिथ्य से प्रसन्न हुए एवं उनको 'राणा' की उपाधि प्रदान करके सम्मानित किया। तब से पानरवा के शासक रावत की अपेक्षा राणा कहे जाने लगे। महाराणा उदयसिंह का राणा हरपाल की बहिन से विवाह भी हुआ। यहीं से पानरवा के सोलंकियों की मेवाड़ के साथ घनिष्ठता प्रारम्भ हुई जो कालांतर में प्रगाढ़ होती गई। राणा हरपाल के विवाह भी मेवाड़ के सलुंबर, बड़ी सादड़ी, बेदला आदि नामचीन ठिकानों में हुए। 


MAHARANA UDAI SINGH  MEWAR AND RANA HARPAL JI PANARWA
पानरवा के जंगल में महाराणा उदय सिंह (बायीं तरफ ) 
पानरवा के सोलंकी शासक राणा हरपाल (दायी तरफ )से मंत्रणा करते हुए (जनवरी , 1568 ई .)


 5. राणा दूदा RANA DUDA -

राणा हरपाल के बाद उनके उत्तराधिकारी राणा दूदा बने लेकिन वे अल्प समय के लिए ही शासक रहे। उनके अनुज नाहर सिंह जी (नाहरू) को ओगणा की जागीर मिली। तथा नाहर सिंह के पौत्र तथा देवराज के पुत्र सूरत सिंह को उमरिया की जागीर प्राप्त हुई। 


6. राणा पूंजा RANA PUNJA -

पानरवा के राणा बने जो मेवाड़ के स्वातंत्र्य संग्राम के अग्रगण्य नायक थे। राणा पूंजा 20 फरवरी, 1572 में महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक समारोह में भी शामिल हुए थे। इतिहास प्रसिद्ध हल्दीघाटी (HALDIGHATI) के युद्ध में राणा पूंजा अपने भील सैनिकों के साथ महाराणा की फौज के चंदावल (पीछे का भाग) में शामिल थे। उन्होंने अपने भील सैनिकों के साथ खुले मैदान की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्र में मोर्चा ले रखा था। क्योंकि पूरा भोमट क्षेत्र मूल रूप से आदिवासी भीलों का निवास स्थान था इसलिए राणा पूंजा की अधिकतर पैदल सेना भीलों की ही थी। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा द्वारा खुले मैदान से पहाड़ियों में लौटने के साथ ही राणा पूंजा भी सेना सहित महाराणा के साथ कोल्यारी पहुंचे और वहीं से गोगुंदा का घेराव किया जहाँ मुगल सेना का ठहराव था। यह घेराव इतना कड़ा था कि मुगल सेना से बाहरी संपर्क के सभी मार्ग अवरुद्ध हो गये और उन्हें कच्ची केरियाँ खाकर समय गुजारना पड़ा। इसके बाद चले लम्बे छापामार संघर्ष में राणा पूंजा अपने सैनिकों सहित महाराणा के सक्रिय सहयोगी बने रहे। 1579 में महाराणा ने पानरवा क्षेत्र को छोड़कर चावंड को अपनी राजधानी बनाई। दिवेर के निर्णायक युद्ध के बाद शान्ति काल में भी राणा पूंजा का महाराणा प्रताप (MAHARANA PRATAP) के साथ संपर्क, सहयोग एवं सम्मान बना रहा। वि.स. 1609 में राणा पूंजा जी का विवाह चौहान दूदा जी की पुत्री गयण कंवर के साथ हुआ था। 


RANA PUNJA, PANARWA FORT


 

7. राणा राम जी RANA RAM JI -

महाराणा अमरसिंह के सहयोगी बने रहे। आपके पुत्र ठाकुर हरि सिंहजी को गामड़ी ठिकाना जागीर में प्राप्त हुआ। आपके दूसरे पुत्र ठाकुर मान सिंहजी को अजरोली ठिकाना जागीर में प्राप्त हुआ ।


8. राणा चन्द्रभान RANA CHANDRABHAN -

महाराणा राजसिंह के समय औरंगजेब से हुए संघर्ष में प्रमुख सहयोगी थे। अनुज राणा भीम सिंह को ओड़ा की जागीर मिली। 


9. राणा सूरजमल RANA SURAJMAL -

आपका  शासन काल 1771-1774 ई. तक रहा। आपके पुत्र करण सिंह को अमलेटा ठिकाने की जागीर प्राप्त हुई।


10. राणा भगवान जी RANA BHAGWAN JI -

आपके पुत्र देपाल को 12 गांव की आदिवास की जागीर दी गई।


11. राणा जोधा जी RANA JODHA JI -

आपके पुत्र ठाकुर भीम सिंह को अमरा ठिकाने एवं ठाकुर सामंत सिंह को नयां गांव ठिकाने की जागीर प्राप्त हुई।


12. राणा रघुनाथ सिंह जी RANA RAGHUNATH JI 

13. राणा नाथू जी RANA NATHU JI

14. राणा गुमान सिंह जी RANA GUMAN SINGH JI

15. राणा कीरत सिंह जी RANA KEERAT SINGH JI

16. राणा केसरी सिंह जी RANA KESARI SINGH JI

17. राणा उदय सिंह जी RANA UDAI SINGH JI

18. राणा प्रतापसिंह जी RANA PRATAP SINGH JI

19. राणा भवानी सिंह जी RANA BHAWANI SINGH JI

20. राणा अर्जुन सिंह जी RANA ARJUN SINGH JI (1881-1923 ई तक शासन)

21. राणा मोहब्बत सिंह जी RANA MOHABBAT SINGH JI -

आपने 1923 ई. से लेकर एकीकरण तक शासन किया महाराणा भूपालसिंह ने सन् 1946 में राणा मोहब्बत सिंह जी को ताजीमी बख्शी, दरबार में बैठक सामने व मुजरा सम्बन्धी अधिकार आदि अन्य अधिकार प्रदान किए। प्रथम श्रेणी के न्यायिक अधिकार प्राप्त हुए 


RANA MOHABBAT SINGH PANARWA
राणा मोहब्बत सिंह  (१९२३-१९६५ ई.)

22. राणा मनोहर सिंह जी सोलंकी RANA MANOHAR SINGH JI SOLANKI (वर्तमान)


मेवाड़ के प्रमुख सहयोगी होते हुए भी पानरवा के सोलंकी शासकों ने अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखा, वे मेवाड़ के अन्य उमरावों की भाँति महाराणा को वार्षिक खिराज नहीं देते थे और ना ही महाराणा के प्रति अनिवार्य सैनिक सेवा में बंधे थे। ब्रिटिश कालीन भारत में यह स्वतंत्रता कायम नहीं रह पायी और अंततः वे मेवाड़ के महाराणा के औपचारिक मातहत बने एवं अपने ठिकाने की वार्षिक आय का 10वां भाग (दशूंद) मेवाड़ के राजकोष में देना स्वीकार किया। 

इस प्रकार रावत अक्षयराज से लेकर राणा मोहब्बत सिंह तक की 21 पीढ़ियों का पर्याप्त वर्णन इतिहास में मौजूद है जिसके अनुसार पानरवा के शासक सोलंकी राजपूत रहे। 


MAHENDRA SINGH RATHORE, DEVI LAL JI PALIWAL, MAHARANA MAHENDRA SINGH MEWAR, MASTER BALWANT SINGH JI MEHTA, RANA MANOHAR SINGH JI PANARWA


THE JUDICIAL SEAL OF THE PRINCELY STATE OF PANARWA
THE JUDICIAL SEAL OF THE PRINCELY STATE OF PANARWA
पानरवा रियासत की मोहरे 


स्त्रोत - 

  • बड़वो की वंशावलियां (बड़वा पोथी)
  • 'गोगून्दा की ख्यात' - स. डॉ. हुकुम सिंह भाटी 
  • 'वीर विनोद' भाग 2 - कविराज श्यामल दास
  • 'उदयपुर राज्य का इतिहास' - डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा  
  • 'पानरवा का सोलंकी राजवंश' पुस्तक - देवीलाल पालीवाल 

 


           साभार :-       

कुं.देवेन्द्र सिंह सारंगदेवोत ठि.उदय सिंह जी की भागल 



                                                                                                                            

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"