खंगारोत इतिहास (KHANGAROT HISTORY)
आमेर महाराजा पृथ्वीराज जी कछवाहा के सुपौत्र एवं जगमाल जी के सुपुत्र खंगारजी, "कछवाहा वंश" की खंगारोत शाखा के प्रवर्तक पुरुष थे।
गोपालजी कछवाहा के सुपुत्र वीर शिरोमणि श्री नाथाजी कछवाहा नाथावत शाखा के संस्थापक हुए एवं गोपालजी के छोटे भाई जगमालजी के सुपुत्र श्री खंगारजी कछवाहा खंगारोत शाखा के संस्थापक हुए। नाथाजी एवं खंगारजी चचेरे भाई थे।
जगमाल जी कछवाहा -
- जगमाल कछवाहा आमेर (जयपुर) के महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा के पुत्र थे।
- उनकी माता बीकानेर की राजकुमारी बाला बाई (राव लूणकरण की पुत्री) थी। बाला बाई, महाराज पृथ्वीराज की पटरानी थीं।
- डिग्गी ठिकाना अभिलेख के अनुसार जगमाल जी का जन्म 1507 ई. (विक्रम सम्वत 1564) में हुआ था।
- आप साईवाड़ की गद्दी पर विराजमान हुए। आप आमेर की बारा कोटड़ी (bara kotri of amer) में शामिल थे।
- जगमाल जी का प्रथम विवाह अमरकोट की सोढा राजकुमारी नेत कंवर ( आसलदे ) के साथ हुआ था सोढ़ी राणी ने अपने नाम से आसलपुर बसाया।
- जगमाल जी ने 'साईवाड़' को दान में दे दिया था इसलिए बाद में इनकी कोटड़ी आसलपुर में बनी एवं वही पर पर्वत के ऊपर गढ़ का निर्माण करवाया गया।
- कालान्तर में जगमाल जी को नारायणा ठिकाने की भी जागीर प्राप्त हुई। आप मेरठ के किलेदार भी रहे।
- जगमाल बहुत बहादुर थे और उन्होंने अपने पिता महाराजा पृथ्वीराज एवं बड़े भ्राता राव गोपालजी के साथ रहकर 1527 ई. में बयाना एवं खानवा के युद्ध में राणा सांगा की तरफ से बाबर के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, ये जगमाल जी की पहली लड़ाई थी।
- डॉ. शम्भू सिंह मनोहर के अनुसार जगमाल कछवाहा ने अपने वीर पुत्रों खंगार, सिंहदेव, जय सिंह (जैसा), सारंगदेव और रामचन्द्र की सहायता से युद्ध करके जोबनेर, नरैना, कालख, बोराज और निकटवर्ती भूमि पर विजय प्राप्त कर आमेर नरेश द्वारा जागीर प्राप्त की।
- उस समय भूमि के इस भाग पर राव हमीर और राव अलारन या हमीरदेका कछवाहा और जोगी कछवाहा (आलनोत) का शासन था।
- पहली लड़ाई साल 1549 ई. में बोराज में अलारनदेव आलनोत के खिलाफ लड़ी गई थी। इस युद्ध में राव जगमाल विजेता रहे लेकिन उनके तीन वीर पुत्र जयसिंह (जैसा), सिंहदेव, सारंगदेव वीरगति को प्राप्त हुए।
- सिंहदेव जी का स्मारक बोराज किले की पहाड़ी पर है। जैसा जी का स्मारक कंवरपुरा पहाड़ी के पास है। सारंगदेव जी का स्मारक जोबनेर और बोराज मार्ग पर बांडी नदी के पास है।
- राव जगमाल ने अपने नाम पर जोबनेर और सांभर के बीच एक नया गांव बसाया जिसका नाम जगमालपुरा रखा गया।
- कालांतर में राव जगमाल को नारायणा की जागीर प्राप्त हुई।
- डिग्गी ठिकाना अभिलेख के अनुसार उनकी 9 रानियों से 5 राजकुमार थे।
- जगमाल जी की रानियों के नाम इस प्रकार हैं-
- सोडी राणी उमरकोट के सूरजमल की पुत्री नैत कंवर
- करणोत की चंद्र कंवर
- जैसलमेर के रावल संग्राम सिंह की पुत्री राजकुंवरी बरखावती कंवर
- पोखरण के खिवकरण की पुत्री राजकुंवरी बोरांगदे
- मेड़तणी राणी (राव दुदा जी की पुत्री और जोधा जी की पोती राजकुंवरी किसनावती)
- चौहान राणी (बलकरण की पुत्री बोरांगदे)
- सोडी राणी (गंगरैना महेशदास की पुत्री राजकुंवरी सदा कंवर)
- चौहान राणी (चितावा की राजकुंवरी)
- चौहान राणी (परबतसर की राजकुंवरी)
- जगमाल कछवाहा के बड़े बेटे राव खंगार ने कछवाहों की खंगारोत शाखा की स्थापना की और जगमाल के छोटे पुत्र रामचन्द्र ने अपने भाई खंगार के साथ कुछ संपत्ति विवाद के कारण राजपुताना छोड़ दिया।
- फिर आमेर महाराजा के साथ रामचन्द्र उत्तर की ओर सैन्य अभियान पर चले गये। आमेर महाराजा ने तात्कालिक कश्मीर के तुर्क शासकों को पराजित किया। रामचंद्र जी वहां प्रशासनिक अधिकारी तैनात हुए और कालान्तर में उन्होंने वही पर डोगरा नाम से अपना एक नया साम्राज्य स्थापित किया। उन्होंने अपने राज्य का नाम कछवाहा कुलदेवी जमुवाय माता के नाम पर "जम्मू" रखा था जो कि तापी नदी के पास था। बाद में वह स्वतंत्र राज्य जम्मू-कश्मीर बना। इनकी वंश परम्परा में जम्मू कश्मीर के अनेक प्रतापी शासक हुए। आज उन्ही के वंशज जम्मू कश्मीर राजपरिवार के सदस्य है एवं उस क्षेत्र में आबाद है।
- सन् 1582 ई. में राव जगमाल कछवाहा की मृत्यु हो गयी। डिग्गी ठिकाना रिकॉर्ड के अनुसार उनकी उम्र 75 वर्ष थी।
- देवी सिंह मंडावा के अनुसार जगमाल की मृत्यु जोबनेर में हुई थी, लेकिन बोराज ठिकाना रिकार्ड के अनुसार राव जगमाल की मृत्यु आगरा में हुई थी। कछवाहा इतिहास में लिखा मिलता है कि 1582 ई. में टांडा में नोरोज बेग से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- आसलपुर में आपकी छतरी बनी हुई है।
खंगार जी कछवाहा -
- जगमाल जी के ज्येष्ठ पुत्र खंगार जी हुए। खंगार जी कछवाहों की खंगारोत शाखा के संस्थापक थे।
- बोराज ठिकानां रिकॉर्ड के अनुसार जगमाल जी कछवाहा की सोढ़ी रानी नेत कंवर (राजकुमारी आसलदे - अमरकोट रियासत) के गर्भ से कुंवर खंगार जी का जन्म संवत 1581 ( 1524 ई ) को चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्ठमी ( शीतला अष्ठमी ) के दिन हुआ। खंगारजी महान योद्धा हुए जिन्होंने अनेक युद्धों में वीरता का परिचय दिया।
- संवत 1639 ( 1582 ई ) में जगमाल जी कछवाहा के देहावसान के बाद महाराव खंगार जी नारायणा की गद्दी पर विराजमान हुए।
- खंगारजी ने झालावाड़ के पास गागरोन के सबसे प्रसिद्ध किले पर विजय प्राप्त की
- खंगारजी ने अपनी अधिकांश सफलता तब प्राप्त की जब उनके पिता जीवित थे अर्थात जब वे कुँवर थे। 1582 में अपने पिता राव जगमाल की मृत्यु के बाद खंगार नारायणा के शासक बने और डेढ़ वर्ष तक ही शासक के रूप में शासन किया।
- 1583 में भीलवाड़ा के पास मांडल नामक स्थान पर शत्रु दल द्वारा घात लगाकर पीछे से हमला कर देने से राव खंगार और उनके चचेरे भाई राव नाथाजी एवं जगन्नाथ कछवाहा वीर गति को प्राप्त हुए।
- खंगार जी की 7 रानियां इनके साथ में ही सती हुई थी।
- खंगारजी के विवाह -
- राठौड़ जोधपुर के किसन सिंह की पुत्री सुजान कंवर
- मेड़ता के राव विरमदेव की पुत्री कल्याण कंवर।
- रिडमलोत साईदासजी की पुत्री लाड कंवर
- बीकानेर मंडलावत सरुंडा संग्राम सिंह की पुत्री आनंद कंवर
- राठौड़ राम सिंह बुआटका की पुत्री फेफ कंवर
- बालकरन चौहान की पुत्री नौरंग दे
- ददेखा के केसरी सिंह चौहान की पुत्री रंग दे
- बिहारीदास चौहान की पुत्री नौरंगदे
- चितावा के मान सिंह चौहान की पुत्री केसरदे
- मकराना के भोजराज चौहान की पुत्री गुमान कंवर
- नैनवा के बदन सिंह सोलंकी की पुत्री राज कंवर
- ठिकाना सेवा के करण सिंह चौहान की पुत्री सौभागदे
- गंवडी के राजनाथ सिंह सोलंकी की पुत्री बीज कंवर
- टोडारायसिंह के राज सिंह सोलंकी की पुत्री चंद्रा कंवर
- रूपनगर के राव रामचंद सोलंकी की पोती और अंगद सिंह राम कंवर की पुत्री
- पहाड़ सिंह तंवर की पुत्री लाड कंवर
- बागोली सहसमल तंवर की पुत्री झूम कंवर
- तंवर वुध सिंह की पुत्री गुलाब कंवर
- निर्वाण मान सिंह की पुत्री लाड कंवर
- खंगार जी की वीरता और पराक्रम पर मुग्ध हो एक समकालीन कवि राव बाघजी लाखणओत ने एक गीत रचा जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार है-
"कलहणि करिथाट कलल उकलते, सोहौड़ सिखर पाव सजिसार"
- इसी प्रकार इनकी वीर गाथाओं पर अन्य रचना है -
सूधी तो सब कोई बांधै, अपणौ अपणै भाग।
मैं बांधी सुरताण पर खांगा खांगी पाग।।
- बोराज ठिकानां रिकॉर्ड में खंगारजी की युद्ध में सफलताओं एवं रणकौशल के विषय मे निम्नलिखित विवरण दिया गया है :-
दूदा लकड़ हाड़ा न मार्यो अर वीको रूपेरी, निशाण अर रणजीत नगारो कोस्यो।
मियां हुसैन खान ने पकडयो, कोट कल्लूर का नवाब ने पकडयो।
लदूणां का नवाब मियां घासीखां न पकड़ ल्याया, मियां मोजदार खान ने पकडयो।
जैसिह खींची गढ़ गागरुणा का न पकडया, जगा पठान टंट भकर न पकडया।
मियां हैदरखान न मारया, मियां कादमबेग न मारया।
प्रताप री फौज न 12 कोस पाछे भगाई।
ईण सारी सफलता पर खुश होर, भूरो हाथी, पेश, कवच, तरवार।
पुरमांडल रो परगनो, नागौर रो पट्टो अर, नराणा रो मोरों पट्टो खंगारजी ने दियो।।
- राव खंगार जी के 15 पुत्र थे -
- नारायण दास जी नरेना
- राघो दासजी धाणा
- बैरीसाल जी गुढ़ा
- मनोहरदास जी जोबनेर
- बाघसिंह जी कालख
- बुधसिंह जी
- हम्मीर सिंह जी धाधोली
- भाखर सिंह जी साखूण
- किसन दास जी तूदेड़़
- अमर सिंह जी पानव
- केशो दास जी मोरड़़
- सबल सिंह जी सीलावत
- गोविन्ददास जी
- तिलोक सिंहजी कमाण
- बिहारी दासजी।
- खंगार जी के बाद उनके बड़े पुत्र नारायणदास जी नरेना विराजे, नारायणदासजी के बड़े पुत्र दुर्जनसालजी ने नरूकों से रहलाणा को विजय किया था। इनके वंश में रहलाणा और हरसोली 2 ताजीमी ठिकाने थे। नारायणदास के एक पुत्र को सोड़ावास का ठिकाना मिला था। 1616 में शत्रुओं से युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई और वे वीर गति को प्राप्त हुए।
- दूसरा पुत्र भाकर सिंह था उसे साखुन की जागीर प्राप्त हुई।
- महाराव खंगार जी के तीसरे पुत्र बेरिसालजी को गुढ़ा ठिकाना प्राप्त हुआ था। जब अजमेर के मोहम्मद मुराद ने नारायणा पर आक्रमण किया तो उसने अपने बड़े भाई की सहायता करने का निश्चय किया और उस युद्ध में वह भी वीर गति को प्राप्त हुआ। बेरिसालजी के पुत्र उगरसिंह ने उगरियावास बसाया था यह ताजीमी ठिकाना था।उग्रियावास और गुढा सयुंक्त रूप से बाद में गुढा बेरिसाल कहलाया। उगरियावास के गजसिंह के तीसरे पुत्र नाथजी के वंश में नवाण का ठिकाना था।
- खंगारजी के चौथे पुत्र मनोहरदास जी को जागीर में जोबनेर प्राप्त हुआ था। इनके वंशज मनोहरदासोत खंगारोत कहलाते हैं। मनोहरदास के छोटे पुत्र प्रतापसिंह मंढा ठिकाने के स्वामी बने, मंढा ताजीमी ठिकाना था। मंढा का ठाकुर भीमसिंह बड़े प्रतापी थे। विक्रम संवत 1885 में वे रामगढ़ के लाड़खानियों की मदद की सहायता हेतु गये थे, जिनका मेड़तियों से युद्ध हो रहा था। उस युद्ध में भीमसिंह घायल हुए। मनोहरदास के द्वितीय पुत्र प्रतापसिंह के वंश में मंढा और भादवा 2 ताजीमी ठिकाने थे। खास चौकी के ठिकानो में डोडी, कोठी प्रतापपुरा, दयालपुरा, जैसिंहपुरा, सिरानोड़ियां आदि थे।
- मनोहरदास की मृत्यु होने पर उनके ज्येष्ठ पुत्र जैतसिंह को जोबनेर की गद्दी प्राप्त हुई थी। यह जोबनेर की ज्वाला माता के परम भक्त थे, ज्वाला माता का यह शक्तिपीठ बहुत प्राचीन है। जैतसिंह पर जब अजमेर से मुराद ने चढ़ाई की तो जैतपुर में जैतसिंह ने मुगल सेना का मुकाबला किया। यह युद्ध ई. 1649 में हुआ था, इस युद्ध में मुराद मारा गया था। खंगारोतों ने साम्भर तक मुगल सेना का पीछा किया था। इस युद्ध में ठाकुर जैतसिंह का पुत्र कल्याणसिंह और उसके भाई सुजानसिंह का पुत्र विजयसिंह वीरगति को प्राप्त हुए थे। जोबनेर के ठाकुर बनेसिंह अपने तीन पुत्रों रामसिंह, भारतसिंह और संग्रामसिंह सहित मावंड़ा के युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए थे।
- खंगारजी के पुत्र मनोहर दास की मां मीरा बाई के परिवार से थीं मनोहर दास के सबसे छोटे पुत्र भोजराज को नारायणा शासक बाघ सिंह जी ने गोद लिया था और भोजराज बाद में नारायणा के शासक बने।
एकीकरण के समय खंगारोत सिरदारो के प्रमुख ठिकाने :-
- भादवा ( मनोहरदासोत )
- बिचुन ( भाखरसिहोंत )
- बोराज ( बैरिसलोत )
- छिर्र ( भाखरसिहोंत )
- दुदु (भाखरसिहोंत )
- डिग्गी ( भाखरसिहोंत )
- गागरडू ( नारायणदासोत )
- हरसोली ( नारायणदासोत )
- जोबनेर ( मनोहरदासोत )
- खण्डेंल ( बाघसिंहोंत )
- मेहंदवास ( भाखरसिहोंत )
- मण्ढां ( मनोहरदासोत )
- मरवा ( भाखरसिहोंत )
- पचेवर ( भाखरसिहोंत )
- पडली ( भाखरसिहोंत )
- रेहलाना ( नारायणदासोत )
- साखुन ( भाखरसिहोंत )
- साली ( भाखरसिहोंत )
- सावरदा ( भाखरसिहोंत )
- सेवा ( भाखरसिहोंत )
- टोरडी ( भाखरसिहोंत )
- उगरियावास ( बैरिसलोत )
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