बिहार का चित्तौड़गढ़ - देवउमंगा रियासत (Chittorgarh of Bihar - DEO UMANGA RIYASAT)

सारंगदेवोत-सिसोदिया वंश की 'देवराज विरासत' (औरंगाबाद, बिहार)

DEO FORT, Devmunga fort and palace, AURANGABAD, BIHAR देवमुंगा किला एवं महल, राजा का किला
 देव राज विरासत (DEO RAJ VIRASAT) 
(DEO KILA, AURANGABAD)
                           

"बिहार का चित्तौड़गढ़", औरंगाबाद (मगध जनपद) क्षेत्र पर मेवाड़ के सारंगदेवोत-सिसोदिया वंश का शासन रहा है। यह क्षेत्र दक्षिण बिहार में स्थित है इसके पूर्व में गयाजी तथा दक्षिण में पलामू के गोर पहाड़ी जंगली क्ष्रेत्र स्थित है। उमंगा और देव घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए क्षेत्र है। मेवाड़ से आये सारंगदेवोत सिसोदिया को वर्तमान में मरियार या मडियार (मगधी बोली में 'मेवाड़' शब्द का विकृत रूप) कहा जाता है। 


1580 ई. के पश्चात बिहार में तुर्क राज्यों का दमन  -

लम्बे समय से तुर्क सत्ता के अधीन रहा यह क्षेत्र पठानों के भयंकर अत्याचारों से पीड़ित था, तुर्क सत्ता का बोलबाला, हिन्दुओ का बड़े स्तर पर शोषण एवं धर्मांतरण से जनता त्रस्त थी। मंदिरों का टूटना , सनातन परम्पराओ पर रोक, धार्मिक कार्यों पर भारी कर (Tax) आदि से धर्म विलुप्त की कगार पर हो गया था। सनातन धर्म के लिए एसी विपरीत परिस्थितियों के समय आमेर के महाराजा मान सिंह प्रथम ने धर्म की रक्षा का बीड़ा उठाया, महाराजा मान सिंह ने बंगाल एवं बिहार के क्षेत्र पर कूच कर क्रमिक आक्रमण करके भीषण रक्तपात मचाया, 1590 ई. में तुर्कों को कुचलते हुए सम्पूर्ण क्षेत्र से तुर्क सत्ता को जड़ से उखाड़ कर फेकने के पश्चात महाराजा मान सिंह ने अनगिनत मन्दिरों का निर्माण करवाया, सभी प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया, धार्मिक कार्यों को करों से मुक्त किया, धार्मिक कार्यों के लिए अनुदान दिए, प्राचीन परम्पराओ को प्रारम्भ करवाया, सभी मंदिरों को सुरक्षा प्रदान की, पुरी के जगन्नाथ मन्दिर धाम को पठानों से मुक्त करवा कर मन्दिर का पुनर्निर्माण एवं मूर्ति स्थापित कर हिन्दुओ के लिए पुनः खुलवाया , गयाजी तीर्थ को पठानों से मुक्त करवा कर पुर्निर्माण करवाया आदि अनगिनत कार्यों से बंगाल-बिहार में सनातन धर्म का फिर से बोलबोला हो गया। 

(स्रौत : इतिहासकार राजीव नयन प्रसाद- मगध विश्वविद्यालय, गया)


दक्षिण बिहार में स्थित देवमुंगा रियासत में 16वी सदी के अंत में सारंगदेवोत सिसोदिया वंश की स्थापना के पश्चात यहाँ के राजाओं ने भी उमंगा रियासत में मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया तथा मुस्लिम शासन के कारण लुप्त हुए क्षेत्रीय प्राचीन हिन्दू उत्सव, त्योहार और मन्दिरों में पूजा करने की परंपराओ को पुनः प्रारम्भ करवाया जो वर्तमान में भी जारी है।  


सारंगदेवोत सिसोदिया वंश का देवमुंगा रियासत में आगमन -

उमंगा के अन्तिम चन्द्रवंशी रक्सेल राजपूत राजा भैरवेन्द्र की मृत्यु के बाद उनकी प्रजा में अराजकता फैल गई। जिससे विद्रोही सामंत तथा निकटवर्ती रियासतो के शासक देवउमंगा को हस्तगत करने का प्रयास तथा सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहे थे। 


DEO FORT, Devmunga fort and palace, AURANGABAD, BIHAR देवमुंगा किला एवं महल, राजा का किला
DEO KILA, AURANGABAD


सिसोदिया वंश की सारंगदेवोत शाखा में 16 उमरावों में से एक प्रथम श्रेणी ठिकाने कानोड़ के शासक रावत नेत सिंह जी के पुत्र तथा महाराणा प्रताप के चचेरे भाई रावत भान सिंह (राय भान सिंह) अपने भाईयों के साथ जगन्नाथपुरी(उड़ीसा) और गया (बिहार) की धार्मिक यात्रा (तीर्थ) करने के लिए गये थे वापस आते समय उमंगा रियासत के निकट रात्रि विश्राम के लिए पड़ाव डाला गया।


RAWAT BHAN SINGH SARANGDEVIT SISODIYA रावत भान सिंह सारंगदेवोत सिसोदिया


तत्कालिक समय उमंगा के दिवंगत राजा भैरवेन्द्र की विधवा रानी पुष्पावती द्वारा राज्य की बागडोर संभाली जा रही थी। राज्य की कमजोर पड़ रही स्थिति को देख कर वहां के सामन्तो द्वारा विद्रोह कर दिया गया था। जब रावत भान सिंह के उमंगा रियासत के पास ठहरने की सूचना रानी पुष्पावती को मिलती है तो रावत भान सिंह के पास रानी अपने संदेशवाहक को भेजकर संदेश भिजवाती है कि उमंगा राज्य पर संकट की घड़ी है और आपसे आग्रह है कि इस घड़ी में क्षत्रिय धर्म निभाते हुए हमारे राज्य की रक्षा हेतु पधारने का कष्ट करे। रावत भान सिंह तत्काल रूप से रानी के आग्रह को स्वीकार करके उमंगा रियासत के लिए प्रस्थान करते है। त्वरित कार्यवाही करके सैन्यबल से रावत भान सिंह द्वारा राज्य में विद्रोहीयो को दबा कर उमंगा रियासत को सुरक्षित किया जाता है। आंतरिक सुरक्षा सुदृढ़ होने से बाहरी हस्तक्षेप भी खत्म हो जाता है।

सारंग जोगो सुजड़ हथ, षगवाहा षुमाण।

सोमा नरबद नेतसी, भारी राउत भाण ।।


रावत भान सिंह से प्रभावित होकर रानी पुष्पावती ने रावत भान सिंह के लिए अपनी इकलौती पुत्री भाष्यवती के विवाह का प्रस्ताव रखा। मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह द्वारा इसकी स्वीकृति मिलने पर रावत भान सिंह का विवाह राजकुमारी भाष्यवती के साथ सम्पन्न होता है। राज्य को पूर्ण सुरक्षित करने हेतु रावत भान सिंह कुछ समय तक उमंगा में ही रहते है। रावत भान सिंह और रानी भाष्यवती से चार पुत्र हुए -

  1. सहस्त्रमल
  2. सिंहमल सिंह
  3. दादुर सिंह
  4. भारथी सिंह

  • रावत भाण द्वारा उमंगा रियासत में सारंगदेवोत सिसोदिया वंश की स्थापना की गयी। वे अपने ज्येष्ठ पुत्र कुंवर सहस्त्रमल सिंह को उमंगा रियासत के उत्तराधिकारी घोषित कर स्वयं मेवाड़ लौट आते हैं।
  • रावत भाण के बाद पुत्र राजा सहस्त्रमल सिंह (विं.स.१६७३ ) उमंगा के उत्तराधिकारी हुए। 
  • रावत भाण के अन्य पुत्र सिहंमल सिंह को रणकप्पि, दादूर सिंह को गढ़ बनिया, भारथी सिंह को महुआवा की जागीर प्राप्त होती है।

RAJA KA KILA, DEO RIYASAT, DEO FORT राजा का किला , देव महल , देव रियासत
देव राजमहल का आंतरिक दृश्य (PALACE OF DEO) 
(DEO KILA, AURANGABAD)


देवमुंगा रियासत के शासकों का वंश क्रम 
(Genealogy of the rulers of the princely state of Devamunga)
  1. राजा सहस्त्रमल सिंह (विं.स.१६७३)
  2. राजा ताराचंद - राजा ताराचंद के अनुज माणिकचंद सिंह को आंजन की जागीर प्राप्त होती है।
  3. राजा विश्वम्भर सिंह - राजा विश्वम्भर सिंह के अनुज यदु सिंह को घटराईन, जगदीश सिंह को बेरी, बूदी सिंह को पेमा की जागीर प्राप्त होती है।
  4. राजा कल्याण सिंह - राजा कल्याण सिंह के अनुज माल सिंह को दधपा, मदनगोपाल सिंह को पचोखर, वंशगोपाल सिंह को बेढनी की जागीर प्राप्त होती हैं।  
  5. राजा अतिबल सिंह - राजा कल्याण सिंह के ज्येष्ठ पुत्र कुं.झुझार सिंह जी का कुंवरपदे देहांत होने पर छोटे पुत्र कु.अतिबल सिंह उमंगा के उत्तराधिकारी बनते हैं।
  6. महाराजा नैनपाल सिंह - महाराजा नैनपाल सिंह के अनुज रत्नपाल सिंह को खड़गडीहा पछेयारी, जयपाल सिंह को कटईया, कर्णपाल सिंह को केताकी, रघुनाथ सिंह को बनिया बसडीहा, इन्द्र सिंह को वारी, दुखिन सिंह को बहुआरा खडगडीहा, बन्धू सिंह, देव सिंह, फतेह सिंह, अगर सिंह और दलेल सिंह को सड़कर की जागीर प्राप्त होती हैं।
  7. राजा प्रताप सिंह - राजा अल्पायु होने के कारण राजमाता सत्यवती ने संरक्षिका बनकर राज्य की बागडौर को सम्भाला 
  8. महाराजा प्रबील नारायण सिंह - महाराजा प्रबील नारायण सिंह ने 18वीं शताब्दी में देव में एक भव्य महल बनवाया। यह जमीनी किला उत्तर की ओर देव-सूर्य-मंदिर के किनारे स्थित है एवं यह राजा का किला नाम से प्रसिद्ध है। देवमूंगा रियासत के सदस्य 'देवराज' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
  9. महाराजा छत्रपति सिंह
  10. महाराजा फतेह नारायण सिंह -  महाराजा फतेह नारायण सिंह ने पिंडारीयो के आतंक का दमन किया। इनकी बेटी का विवाह आरा - जगदीशपुर (बिहार) के वीर बाबू कुंवर सिंह के साथ हुआ।‌‌ 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों के विरुद्ध वीर बाबू कुंवर सिंह को देवमुंगा द्वारा सैनिक सहायता भी प्रदान की गई थी।
  11. महाराजा घनश्याम सिंह - कुं मित्रभान सिंह का कंवरपदे देहान्त होने पर अनुज महाराजा जयप्रकाश नारायण सिंह (वीर भारतेंदु) देव उमंगा के उत्तराधिकारी हुए।
  12. महाराजा जयप्रकाश नारायण सिंह (वीर भारतेंदु) - देव उमंगा के उत्तराधिकारी हुए।
  13. महाराजा भीष्म नारायण सिंह
  14. महाराजा जगन्नाथ सिंह - 16 अप्रैल 1934 ई.को निसंतान देहांत हो जाता है। तथा रानी बृजराज कुमारी का 1976 ई. में देहांत हो गया। 
ब्रिटिश राज में अंतिम महाराजा की संपत्ति 92 वर्ग मील में फैली हुई थी जो 1901 और 1903 के बीच सर्वेक्षण और निपटान के तहत जमीदारी में लायी गयी। बिहार भूमि सुधार अधिनियम के साथ, देवराज की जमींदारी पारित हो गई ।
DEO FORT, Devmunga fort and palace, AURANGABAD, BIHAR देवमुंगा किला एवं महल, राजा का किला
DEO FORT, Devmunga fort and palace, AURANGABAD, BIHAR देवमुंगा किला एवं महल, राजा का किला
देव राज विरासत 
(DEO KILA, AURANGABAD)

प्रमुख जागीरदार ठिकाने

रणकअपी, गढ़बनिया, महुआवा, आंजन, रियासत घटराईन, बेरी, पेमा, दधपा, बेड़नी, पचोखर ,खड़गड़ीहा, बसड़ीहा, कटईया, केताकी, बहुआरा ,वारी, सड़कर, विशमभरपुर, बारह, धोपड़ीहा, मदनपुर, केसौर, इमामगंज (जिला औरंगाबाद, मगध जनपद, बिहार)।

अन्य - पाँती इमालियाटिकर (पलामू जिला, झारखंड) आदि।


स्रौत -
१.तवारीख कानोड़
२.महारावत करण सिंह जी की हस्तलिखित डायरी
३.कानोड़ और देवमूंगा के मध्य हुए पत्राचार
४. हरिद्वार पंण्डे पोथी
५. गयाजी पंण्डे पोथी

           साभार :-       

राजमाता इन्द्रा कंवर कानोड़

महारावत श्री योगेश्वर सिंह जी कानोड़

कुं.अभिषेक सिंह रियासत घटराईन, बिहार

कुं.देवेन्द्र सिंह सारंगदेवोत ठि.उदय सिंह जी की भागल 



                                                                                                                            

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"