शिवब्रह्मपोता (कछवाहा)
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शिवब्रह्मपोता (कछवाहा) राजपूतों का इतिहास |
आमेर के महाराजा उदयकरण जी हुए जिनका शासनकाल 1366 ईस्वी से 1388 ईस्वी तक रहा है। आमेर नरेश उदयकरण जी के चौथें पुत्र शिवब्रह्म जी थे। उनके वंशज शिवब्रह्मपोता कहलाये।
(नोट : "शिवब्रह्मपोता" कछवाहा राजवंश की मूल शाखाओ में से एक शाखा है, यह कछवाहा राजवंश की राजावत शाखा की उपशाखा नहीं है)
शिवब्रह्म जी को नींदड क्षेत्र जागीर में मिला था। नींदड ठिकाने की स्थापना राव शिवब्रह्म ने की थी। नींदड़ जयपुर साम्राज्य का ताजिमी ठिकाना रहा है। राव शिवब्रह्म नीदड़ के प्रथम शासक हुए जिनको नींदड सहित 50 अन्य गांवों की जागीर आमेर महाराजा से प्राप्त हुई। इन्होंने तीन प्रमुख लड़ाईयां लड़ी और तीनों में विजयी हुए ।
शिवब्रह्मजी के पुत्र भोजराज सिंहजी हुये। भोजराज के पुत्र रणमल सिंहजी हुए जिनके तीन पुत्र हुए - नाथू सिंह, पंचायण सिंह और आसल सिंह।
पंचायण सिंह के पुत्र देवीदास जी और देवीदास जी के पुत्र गोपाल सिंह हुए। गोपाल सिंह ने बचपन में ही बड़गूजर राजपूतों से कई युद्ध किये एवं उनमे सफलता प्राप्त की। आपको महाराजा मानसिंह जी प्रथम के मुख्य सरदारों में शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ तथा महाराजा मान सिंह के साथ पूरब के युद्ध अभियान में रहे। गोपाल सिंह ने "कैमर की घाटी" के युद्ध में बड़ी वीरता प्रदर्शित की थी तथा कतलू खां पर सेल चलाया था। इनकी वीरता से प्रसन्न होकर महाराजा मानसिंह जी ने गोपाल सिंह को रावत के खिताब से सम्मानित किया। गोपाल सिंह ने बरार के युद्ध में भी भाग लिया था। नीदड़ के फतेहसिंह ने बड़गूजरों से युद्ध किये। नीदड़ के रावत देवीसिंह के तीन पुत्र थे— बरबतासिंह, झुंझारसिंह व जोरावरसिंह। महाराजा सवाई जयसिंह जी के जोरावरसिंह फौज बख्शी थे जो भोमिया रूप में पूजे जाते है। इनकी स्मृति में जयपुर के जोरावर सिंह पोल का नामकरण हुआ। देवीसिंह के बाद झुंझारसिंह नीदड़ के रावत हुये। जब महाराणा ने रामपुरा का परगना कुं. माधोसिंह जी को दिया तब वहां का प्रबन्ध जोरावरसिंह शिवब्रह्मपोता को सौंपा गया। वि. १७९७ जेठ वदी ७ को परगना रामपुरा में युद्ध हुआ जिसमे दौलतसिंह शिवब्रह्मपोता ने बड़ी वीरता दिखलाई ।
मालवा में रहते समय जोरावरसिंह ने भानपुर में कवियों की सभा काव्य पर विचार करने के लिए करवाई थी। नाथूराम भाट ने इनकी सेवा में रहकर 'कविता कल्पतरु' ग्रन्थ रचा। जोरावरसिंह साहित्य के बड़े प्रेमी थे। महाराजा सवाई माधोसिंह जी प्रथम के समय में भी यह उनके प्रमुख सरदारों में रहे। वि. १८०२ आसोज में बूंदी के युद्ध में नीदड़ के रावत नाथूसिंह ने बड़ी वीरता से युद्ध किया । वि. १८२४ आसोज वदी १३ को भटेरी के युद्ध में जाटों से युद्ध करके विजय के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। तब उनके पुत्र भोपालसिंह नीदड़ के रावत बने। नीदड़ के रावत फतहसिंह के छोटे पुत्र चतरसिंह के वंश में बणयाणा का ठिकाना था । वि. १८४० में जयपुर की सेना राव प्रतापसिंह जी नरुका पर चढ़ाई करने गई । उसमें सरदारसिंह बणियाणा भी युद्ध में गया था। बणियाणा के अजीतसिंह के छोटे पुत्र भैंरूसिंह को गूगोलाव ठिकाना मिला था। बणियाणा के निर्भय सिंह के दूसरे पुत्र के वंश में हीगोटया ठिकाना तथा तीसरे पुत्र मालमसिंह के खानदान में कोल्यावास का ठिकाना था। नीदड़ के राव रणमल के छोटे पुत्र जैतसिंह को आकेड़ा ठिकाना जागीर में मिला था।
नीदड़ के गोपालसिंह के छोटे पुत्र गोविन्ददास को वर्तमान गुढ़ा का इलाका जागीर में मिला था। गोपालसिंह के तीसरे पुत्र नारायणदास को पीलवा मिला था। गुढ़ा के दीपसिंह के पुत्र राजसिंह को सहयौं ठिकाना मिला था। गुढ़ा का सूरतसिंह २९ नवम्बर ई. १७६१ को मागरोल के युद्ध में जयपुर की ओर से लड़ा था। सूरतसिंह के मरहठों से वीरतापूर्वक मुकाबला करने के कारण महाराजा सवाईमाधोसिंह जी ने इन्हें बरनाला वि. १७१५ में बख्शा, जिसे इसने अपने छोटे पुत्र भवानीसिंह को दे दिया था। वि. १८८७ में झिलाय पर राज्य की फौज गई। बरनाला झिलाय को मदद कर रहा था, इसलिए इस पर भी हमला हुआ। चन्द्रसिंह ने अपने नाम पर गुढ़ा चन्द्र जी बसाया। गुढ़ा के ठाकुर गुमानसिंह के छोटे भाई सरदारसिंह जयपुर के नामी डॉक्टरों में रहे है।
शिवब्रह्म पोतों के जयपुर में चार ताजीमी ठिकाने थे- बणियाणा, बरनाला, गुढ़ा चन्द जी और नीदड़। इनके अलावा अन्य ठिकाने बालमों, श्री रामपुरा, पूरणवास महयों, गूगोलाव, पीलवो, हींगोरयो, कोल्यावास, आचेड़ो आदि थे। इनके १२ खास चौकी के ठिकाने थे।
नींदड़ के शिवब्रह्मपोता कछवाहा राजपूतों का वंशक्रम -
- राव शिवब्रह्म जी - आप आमेर के महाराजा उदयकरण जी के चौथें पुत्र हुए। आपके वंशज शिवब्रह्मपोता कहलाये। शिवब्रह्म जी को नीदड़ क्षेत्र जागीर में मिला था। नींदड ठिकाने की स्थापना राव शिवब्रह्म जी ने की थी। इन्होंने तीन प्रमुख लड़ाईयां लड़ी और तीनों में विजयी हुए।
- राव भोजराज जी - नींदड के दूसरे राव
- राव रिडमल जी - नींदड के तीसरे राव
- राव रणमल जी - नीदड़ के चौथे राव
- राव पंचायन जी - नींदड के 5 वें राव
- राव देवीदास जी [दीदास] नींदड के 6 वें राव
- रावत गोपालदास जी नींदड के 7 वें रावत जो एक बहादुर और निडर योद्धा थे । 12 साल की उम्र तक उन्होंने बड़गुजरो के खिलाफ तीन लड़ाई लड़ी थी। वह आमेर के राजा मान सिंह के साथ पूर्व की ओर एक अभियान में गये, और बालघाट के फौजदार को मारा। अफगानिस्तान की कैमर घाटी में एक अभियान में उसने कतलू खान पठान को मार डाला था। आपने दक्षिण में बरार के युद्ध में वीरता का प्रदर्शन किया। महाराजा मान सिंह ने आपकी सेवाओ से प्रसन्न होकर आपको रावत की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया।
- रावत भूपत सिंह जी नींदड के 8 वें रावत हुए और इन्होंने भी अपने पिता की तरह युद्धों में अनेक लड़ाईया लडी और ठिकाने को प्रतिष्ठित किया।
- रावत राघोदास जी 9 वें रावत हुए।
- रावत फतह सिंह जी नींदड के 10 वें रावत हुए उन्होंने बडग़ुर्जर राजपूतों एवं अन्य के खिलाफ विजयी युद्ध अभियान किये।
- रावत केशरी सिंह नींदड के 11 वें रावत हुए। बिना वारिस के स्वर्गवास होने पर उनके छोटे भाई ने गद्दी संभाली।
- रावत देवी सिंह जी नींदड के 12 वें रावत रावत हुए। देवीसिंह के तीन पुत्र थे - बरबतासिंह, झुंझारसिंह व जोरावरसिंह।
- रावत जुझार सिंह जी - नींदड के 13 वें रावत हुए।
- रावत जोरावर सिंह नींदड के 14 वें रावत हुए और जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह जी के समय में जयपुर में एक प्रमुख कुलीन और सेनापति थे अनेक लड़ाइया लड़ी ज्यादातर भरतपुर के जाटों के खिलाफ लड़ी । व मालवा में रामपुरा के परगना का गवर्नर नियुक्त किया गया जिसे उदयपुर के महाराणा ने महाराजा सवाई माधो सिंह जी के अल्पआयु होने के दौरान उपहार में दिया था व पुराने जयपुर के उत्तरी द्वार का नाम रावत (जोरावर सिंह द्वार) के नाम पर रखा गया है और रामपुरा परगना वार्ड 22 तालुका में विभाजित है। रावत जोरावर सिंह ने अपने बेटे रतन सिंह को मल्हारगर की जागीर दी। सवाई जयसिंह ने दरवाजे की रक्षा का भार नींदड़ के शूरवीर राजा जोरावर सिंह को सौंप रखा था। जोरावर सिंह कवियों का खूब मान रखते थे। भट्टों की गली के कवि देवी सिंह पर जय सिंह नाराज हो गए और उसे जिंदा या मुर्दा दरबार में पेश करने का हुकुम दे दिया। मौत के भय से कवि जोरावर सिंह की शरण में आया और जान बचाने की गुहार की। जोरावर सिंह ने मूछों पर ताव देकर तलवार को लहराते हुए देवी सिंह को आश्वासन दिया कि मैं राजपूत हूं, शरणागत की रक्षा करना राजपूत का धर्म है। जोरावर सिंह ने अपने खुद के राजा जयसिंह की परवाह नहीं की और कवि को अपनी सैन्य छावनी में रख लिया। कवि को गिरफ्तार करने जयसिंह की सेना आई तब जोरावर सिंह ने तलवार उठा युद्ध किया। वह अपने सैनिकों के साथ खूब लड़ा और अंत में शहीद हो गया। जयपुर फाउंडेशन के सियाशरण तस्करी के मुताबिक नींदड़ का जोरावर सिंह शरणागत की रक्षा के लिए अपने ही राजा जयसिंह की सेना से अंतिम सांस तक लड़ा। दरवाजे के पास माधव विलास में जोरावर सिंह को भोमिया के रूप में सारा ढूंढाड पूजता है और गठजोड़ों की धोख लगती है। जयसिंह को - हकीकत का पता लगा तो वह - काफी दुखी हुए और ध्रुवपोल दरवाजे का नाम जोरावर सिंह के नाम पर रख दिया। कवि नाथू राम ने कल्पतरु ग्रंथ भी जोरावर सिंह के संरक्षण में लिखा था।
- रावत सरदूल सिंह नींदड के 15 वें रावत हुए ।
- रावत भोपाल सिंह जी के 16 वें रावत हुए।
- रावत हरि सिंह निंदड़ के 17 वें रावत हुए और एक पैतृक रिश्तेदार को गोद लिया था।
- रावत ईश्वरी सिंह जी नींदड के18 वें रावत हुए उनके तीन पुत्र थे
- रावत लक्ष्मण सिंह जी नीदड़ के 19 वें रावत हुए और बिना वारिस के देवलोकगमन होने पर उनके बाद छोटा भाई उनका उत्तराधिकारी बना।
- रावत जालिम सिंह जी नींदड के 20 वें रावत
- रावत महताब सिंह जी नींदड के 21 वें रावत हुए । 1 नवंबर 1875 को मेयो कॉलेज, अजमेर में शिक्षित (भर्ती होने वाले दूसरे छात्र) बीकानेर में महाजन के जागीरदार की एक बेटी से शादी की, और उसके दो बेटे और एक बेटी थी।
- रावत राम सिंह जी नीदड़ के 22वें रावत हुए जिनका विवाह इटावा जिले (यूपी) के मल्हाजिनी के परिहार राजा प्रबल प्रताप सिंहजी की बड़ी बेटी से उनकी दूसरी पत्नी, फैजाबाद जिले के खजुराहाट के बाबू भीम दत्त सिंह जी की बेटी से हुआ ।
- रावत अमर सिंह जी नीदड़ के 23 वें रावत हुए जिनका जन्म 1887 में हुआ और जोधपुर में डाबड़ी के जागीरदार की बेटी जोधीजी रानी सुगन कुंवर से शादी की और उनके दो बेटे हुए व 1919 में उसकी मृत्यु हो गई । इनके बाद
- रावत रघुनाथ सिंह निंदड़ के 24 वें रावत हुए जिनका शासन काल 1919 से 1936 तक रहा । इनका जन्म 1908 ईस्वी में हुआ। आपने मेयो कॉलेज, अजमेर में शिक्षा प्राप्त की व बीकानेर में हरसर की राजकुमारी, रानी चंद्र कुंवर से विवाह हुआ। चन्द्र कँवर से पुत्र प्राप्त हुआ, जिनका नाम सुरेन्द्र सिंह रखा गया।सुरेन्द्र सिंह का जन्म 1930 ईस्वी में हुआ और मेयो कॉलेज अजमेर से शिक्षित हुए और 1949 में अपने काका राव किशन सिंह के साथ उत्पाद शुल्क, कराधान और सीमा शुल्क विभाग में भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए, लेकिन जल्द ही सेवा छोड़ दी और घर पर ही रहे व बुडसू की राजकुमारी महेंद्र कुमारी से शादी की और उनके पाँच पुत्र और छह पुत्रियों का जन्म हुआ। 1980 में स्वर्गवास हो गया। पांच पुत्रो के नाम राव रणवीर सिंह जी, राव महेंद्र सिंह जी, राव वीरेंद्र सिंह जी, राव नरेंद्र सिंह जी, राव गजेंद्र सिंह जी है। रावत रघुनाथ सिंह जी का दूसरा विवाह बीकानेर में मयाला की रानी मोहन कुंवर से हुआ और उनके दो बेटे हुए जिनका नाम राव हरि सिंह व राव हर्षवर्धन सिंह था। राव हरि सिंह जी का जन्म 1935 में हुआ व शिक्षा मेयो कॉलेज, अजमेर और बाद में महाराजा कॉलेज, जयपुर में प्राप्त की और महामहिम सरकार द्वारा अपने पिता की ओर से युद्ध पदक प्राप्त किया। एक प्रमुख इतिहासकार, गणितज्ञ और वैज्ञानिक के रूप में आपको भारत सरकार द्वारा विशिष्ट कॉलसाइन VU2HSN के साथ एमेच्योर टेलीग्राफ ऑपरेटर्स लाइसेंस से सम्मानित किया गया था। तृष्णा अभियान के दौरान आपको भारतीय सशस्त्र बल द्वारा पदक से सम्मानित किया गया, जो सात देशों का शांति नौका अभियान था। यह समुद्र में अपने समय के दौरान समुद्र पर चला गया और डॉ. हरि ने संचार किया। यह उल्लेख किया गया था कि "जहां सेना विफल रही डॉ. हरि सफल हुए"। 1955 में कानोता के ठाकुर केशरी सिंह की पुत्री सुगन कुमारी से शादी की , और उनसे एक पुत्र एवं एक पुत्री का जन्म हुआ। आपका स्वर्गवास 2006 मे हुआ। राव हर्षवर्धन सिंहजी पहले सेंट जेवियर्स, जयपुर और बाद में मेयो कॉलेज, अजमेर में (चौथी पीढ़ी के छात्र के रूप में) शिक्षित हुए। बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और लॉ में अपना बी. कॉम और एम. कॉम पूरा करने के बाद, उन्हें भारत सरकार द्वारा एमेचर वायरलेस टेलीग्राफ लाइसेंस से सम्मानित किया गया और अद्वितीय कॉलिंग VU2HVS सौंपा गया। पृथ्वी थिएटर, मुंबई और अमरिकन सेंटर, दिल्ली में प्रदर्शन के साथ एक प्रमुख थिएटर अभिनेता के रूप में रहे। उन्होंने हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों में एक अभिनेता के रूप में अपने काम को आगे बढ़ाया, मर्चेंट आइवरी प्रोडक्शंस द्वारा रानी और धोखेबाज़ और बाद में एक रूसी सहयोग फिल्म अजूबा में कार्य किया किया। फिल्मों के प्रति अपने जुनून के साथ-साथ उन्होंने "द हर्षा एंटरप्राइजेज" नाम की फर्म द्वारा अपना खुद का व्यवसाय किया और वर्तमान में जयपुर में अपने आवास पर एक गेस्ट हाउस चलाते हैं। अप्रैल 1986 को करौली के पास अमरगढ़ की डॉ अंजू कुमारी से शादी हुई। उन्होंने पहले सोफिया और बाद में राजस्थान विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। उन्हें 2013 में आईआईएसयू द्वारा कला में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री से सम्मानित किया गया था। एक पुत्री और एक पुत्र का जन्म हुआ। पुत्री नेहा सिंह ने MGD स्कूल, जयपुर और बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। निदेशक (भारतीय आर्थिक सेवा) पूर्व मामलों के मंत्रालय भारत सरकार में कार्यरत रही। पुत्र जय वर्धन सिंह शिवब्रह्मपोता सेंट जेवियर्स, जयपुर और बाद में जेवियर्स कॉलेज में शिक्षित हुए। उन्हें वहां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय, बोस्टन यूएसए में एक वक्ता और प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया था। HPAIR और दक्षिण पूर्व एशिया में सुरक्षा और कूटनीति पर बात की। वर्तमान में अपना निर्यात व्यवसाय चला रहे है। रावत हर्षवर्धन सिंह जी 10 अक्टूबर 2006 से गददी के वर्तमान प्रमुख व संरक्षक है ।
नींदड किला - यह किला आमेर से लगभग 10 किमी पश्चिम में एक सीधी रेखा में स्थित है, लेकिन आमेर से पहाड़ियों और जंगलों से अलग है। महाराजा सवाई जय सिंह जी द्वारा 1727 ई. में जयपुर के रूप में अपनी नई राजधानी की स्थापना के बाद यह जयपुर के करीब आ गया और गांव को 1995 से पहले जयपुर नगर निगम में शामिल किया गया था । इस गांव में एक किला और एक महल है जो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 08 से दिखाई देता है। इस गाँव की स्थापना आमेर (जयपुर) 1366- 1388 के राजा उदयकरणजी के चौथे पुत्र राव शिवब्रम्ह ने की थी। शिवब्रम्ह को विरासत के रूप में नींदड़ सहित अन्य गाँव मिले। इसके बाद शिवब्रम्हजी के पुत्रों और पौत्रों ने 1956 तक नींदड पर शासन किया, वर्तमान में रावत हर्षवर्धन सिंह जी है जो 10 अक्टूबर 2006 से गद्दी के वर्तमान प्रमुख और संरक्षक है।
किला नींदड गाँव की एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था मे है । पोल (दरवाजा) बना हुआ है और अंदर चौक बना हुआ है हालांकि किला ज्यादा बड़ा नही है लेकिन चौकोर बना हुआ है । किले में चार बुर्ज बनी हुई है जिसमे एक बुर्ज टूट चुकी है । किला पहाड़ियों के बीच मे बना हुआ है । किले में कई कमरे बने हुए है जिनमे दो कमरे स्पष्ट रूप से सही बने हुए प्रतीत होते है और अन्य कमरो के खंडहर बचे है । किले में एक बावड़ी बनी हुई है उसमें जाने के लिए सीढ़ीया बनी हुई है । किले के दो तरफ एक दूसरी दीवार भी केवल पत्थर प्लास्टर से बनाई गई है और इसका निर्माण भी अधिकतर पत्थरो से किया गया हैं और प्लास्टर के लिये मिट्टी का प्रयोग किया गया है । किले में दो प्रवेश द्वार है । इस किले से जयपुर शहर व नींदड ग्राम को देखा जा सकता है । किले की देखरेख ना होने के कारण यह किला भी अपना अस्तित्व खोता हुआ सा नज़र आता है । इस विरासत को बचाना मुश्किल है ।
भारत में प्लेग फैलने पर शाही परिवार को अलग-थलग करने के लिए प्रथम विश्व युद्ध के बाद आखिरी बार इस किले का इस्तेमाल किया गया था।
अंग्रेजी फिल्म द फार पवेलियन और हिंदी फिल्म गुलाल की शूटिंग निंदर पैलेस और किले के अंदर और बाहर की गई थी।अभी भी समय है अगर पर्यटन की दृष्टि से इसका जीर्णोदार कर दिया जाए तो वापिस अपनी पुरानी वाली स्थिति में आ सकता है । परन्तु असंभव सा है । नींदड की पहाड़ी पर भोमिया जी का मंदिर है। नींदड़ के गढ़ में भोमियाजी के गठजोड़ की धोक लगती है। गाँव में सेठों की हवेलियां है।
संवत 1797 में रामपुरा युद्ध में दौलत सिंह ने वीरता दिखाई। संवत 1824 के भटेरी युद्ध में नाथू सिंह ने कुर्बानी दी। रावत फतेह सिंह के बेटे चतर सिंह को बनियाना, भैरोसिंह को गूगोलाव, निर्भय सिंह को हिंगोलाव, तीसरे बेटे को मालम सिंह को कोलियावास मिला। जैतसिंह को आंकेड़ा, गोविंदास को गुढा और नारायण को पीलवा और राज सिंह को महयो मिला। सुरजन सिंह गुढा ने मांगरोल युद्ध लड़ा। चंद्रसिंह ने गुढाचंद्रजी बसाया। गुढा के सरदार सिंह जयपुर में प्रसिद्ध डॉक्टर थे।
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