पंचायणोत (पिच्यानोत) कछवाहा PICHANOT KACHHWAHA

  पंचायणोत (पिच्यानोत) राजपूतों का इतिहास 
HISTORY OF PICHANOT RAJPUTS


आमेर के महाराजा पृथ्वीराज जी के पांचवें पुत्र पंचायण सिंहजी थे। इनका जन्म महाराजा पृथ्वीराज जी के पटरानी बाला बाई के गर्भ से हुआ था। भाई बंट के दौरान इन्हें नायला, साम्भरिया आदि क्षेत्र जागीर में मिले थे। इनके वंशज पंचायणोत (पिच्यानोत) कहलाते हैं। पिच्यानोत "बारा कोटड़ी" में शामिल सरदार थे। पंचायण जी को साम्भरिया (सामरिया) के संस्थापक भी कहा जाता हैं।


पंचायणोत (पिच्यानोत) कछवाहा  PICHANOT KACHHWAHA


इतिहासकार देवी सिंह मंडावा ने लिखा है कि आमेर के तत्कालीन महाराजा पृथ्वीराज ने अपने पांचवें पुत्र पंचायण को खोरी का जागीरदार बनाया था। बाद में बिठ्ठल दास का बेटा उदयसिंह नायला का शासक बना। इनके पुत्र सामरिया के सुजान सिंह ने बेटे किशन दास के साथ गोनेर मंदिर की खातिर अपना बलिदान दिया। उस समय गोनेर भी सुजान सिंह की जागीरी का गांव था। सुजान सिंह के चार पुत्र थे - किशनदास, नहरदास, विठलदास और रामचन्द्र । बिठलदास का पुत्र वाघ सिंह, रामचन्द्र सिंह जी का पुत्र सबलसिंह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। बिठलदास के पुत्र श्यामदास भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

जयकृष्ण सिंह और श्यामसिंह (हृदयराम सिंह के पुत्र), पंचायणोत जगन्नाथ (उदयसिंह का पुत्र) तथा मथुरादास, गोकुलदास (गोयन्ददास/गोविन्ददास पंचायणोत के पुत्र) मिर्जा राजा जयसिंह जी के सरदारों में शामिल थे। दूलसिंह पंचायणोत (अर्जुनसिंह का पुत्र) आमेर की तरफ से मावन्डा के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए, इस युद्ध मे भरतपुर की सेना पराजित हुई 

कालान्तर में पिच्यानोतों को आमेर महाराजा द्वारा ताजिमी ठिकाने 'सहर' के अंतर्गत 40 घोड़ो की जागीर प्राप्त हुई। सहर के अधीन पांच भाइयों के पांच ठिकाने - (१) पहले भाई को ठिकाना - ढिगावड़ा, अलवर को (14 घोड़े की जागीर मिली।) (२) दूसरे भाई शिशराम सिंह पिचानोत ठिकाना - कैरवाड़ा, अलवर को (12 घोड़े की जागीर मिली।) (३) तीसरे भाई को ठिकाना - खेड़ली पिचानोत, अलवर को (08 घोड़े की जागीर मिली।) (४) चौथे भाई को ठिकाना - रूपवास, अलवर (4.25 घोड़े की जागीर मिली।) (५) पाचवे भाई को ठिकाना - धोलापलाश, अलवर को (1.75 घोड़े की जागीर)।

पंचायणोतों के सामरिया और सहर दो ताजीमी ठिकाने रहे थे। इनके अलावा पिपलाई, भासू, बरदाले, उड़दीन, अमरगढ़, तलावडो, इसवाणौ, ढोगवाडे, खेड़ली, खारेड़, केरवाड़, रूपवास, धोलापलाश आदि अन्य ठिकाने रहे है।


गोनेर के लक्ष्मी जगदीश मंदिर की रक्षार्थ अमर बलिदान -

जब जयपुर के महाराजा रामसिंह प्रथम युद्ध अभियान पर काबुल गये हुए थे तब औरंगजेब ने मौका देख कर आमेर के मंदिरों को तोड़ने का फरमान जारी कर दिया था।  

इसी फरमान का पालन करते हुए औरंगजेब की मुगल सेना जब गोनेर के लक्ष्मी जगदीश मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़ी तब सामरिया ठिकाने के ठाकुर सुजान सिंह पिच्यानोत के नेतृत्व में राजपूत वीरों ने मुगल सेना का मुकाबला किया और अपने प्राणों का बलिदान देकर गोनेर के मंदिर को बचा लिया था।

अगस्त 1681 में मुगलों से हुए इस भीषण युद्ध में ठाकुर सुजान सिंह अपने पुत्र कुंवर किशनदास के साथ अंतिम सांस तक लड़े और अंत में रणभूमि में सिर कटा कर उन्होंने अतुलनीय बलिदान दिया था। इस युद्ध में सुजान सिंह की सैन्य टुकड़ी ने करीब तीन सौ मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। छोटी सी जागीर सामरिया के स्वामी कछवाहा राजपूत ने मंदिर की पवित्रता को बचाने के लिए प्राणों की आहुति देने में कोई संकोच नहीं किया। औरंगजेब के सैनिक मंदिर की देहरी को लांघ नहीं सके और इसके शिखर पर भगवान जगदीश की पताका फहरती रही। सुजान सिंह के बलिदान की गाथा इतिहास के पन्नों में तो अमर हो गयी लेकिन राजनीती से प्रेरित आधुनिक इतिहासकारों ने इस गाथा को इतिहास के पन्नो में ही दबा दिया।

इतिहासकार जदुनाथ सरकार और कविराजा श्यामल दास ने वीर विनोद में लिखा है कि मंदिरों को तोड़ने के लिए औरंगजेब 25 सितंबर 1679 को अजमेर पहुंचा था। गोनेर पहूंची मुगल सेना का मुकाबला ठाकुर सुजान सिंह ने किया। रणभूमि में सुजान सिंह का सिर गोनेर के तालाब की पाल पर गिरा था। वहां बनी छतरी को लोग भौमिया जी की छतरी कहते हैं। इसके पास सुजान सिंह के साथ सिर कटवाने वाले स्वामी भक्त नाई यानी खवास जी का चबूतरा भी है। 

मुहणोत नैणसी ने लिखा है कि हबीब खां से लड़ते हुए सुजान सिंह वीर गति को प्राप्त हुए। इस घटना के समय आमेर के तत्कालीन नरेश राम सिंह प्रथम युद्ध अभियान पर काबुल गये हुए थे। 


श्री लक्ष्मी जगदीश मन्दिर गोनेर
श्री लक्ष्मी जगदीश मन्दिर गोनेर 


नोट - औरंगजेब की सेना खण्डेला के ठाकुर जी मन्दिर को ध्वस्त करने गयी तो मंदिर की रक्षार्थ नवविवाहित ठाकुर सुजान सिंह शेखावत ने मुगल सेना का सामना किया था एवं मंदिर को सुरक्षित करके स्वयं वीरगति को प्राप्त हुए थे। ठाकुर सुजान सिंह शेखावत की गौरव गाथा को पढने के लिए - click here  


भौमिया जी ठा.सा. श्री सायब सिंहजी पिचानोत -

ठाकुर शिशराम सिंह पिचानोत और उनके बाद उनके पुत्र ठाकुर राज सिंह पिचानोत संवत १६९० से ठिकाना कैरवाड़ा में निवास करने लगे। ठाकुर राज सिंह पिचानोत के पाँच पुत्र हुए - ठाकुर साहब जोरावर सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब धन सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब श्री सायब सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत। 

सायब सिंह पिचानोत के दो पुत्र धीरज सिंह पिचानोत एवं मोहन सिंह पिचानोत थे। ठाकुर सायब सिंह पिचानोत आमेर (जयपुर) की तरफ से किसी युद्ध में सम्मिलित हुए एवं शत्रुओं का मर्दन करते हुए रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए। लोक मान्यताओं के अनुसार दाह संस्कार से तुरंत पहले सायब सिंहजी का शव स्वतः ही धरती में समाहित हो गया था। सायब सिंहजी भोमिया (लोकदेवता) के रूप में आस-पास के क्षेत्र में पूजे जाते है एवं जनसामान्य में भोमिया जी की बहुत मान्यता है। 

सायब सिंहजी भोमिया जी ने हाथरस (उत्तर प्रदेश) के एक सेठ को स्वप्न में दर्शन देकर कैरवाड़ा गाँव में जाकर पिचानोत राजपूतो के मोक्षधाम में उनका मन्दिर बनाने का आदेश दिया था। बार-बार स्वप्न आने पर सेठ कुछ दिनों बाद स्वप्न में मिले आदेश अनुसार बताये गये गाँव कैरवाड़ा में पहुंचा। स्थानीय लोगों से इतिहास जानने के बाद स्वप्न की सत्यता को जानकर अचंभित हुआ। सेठ अपने स्वप्न में मिले आदेश अनुसार उक्त स्थान पर भोमियाजी के मंदिर का निर्माण करवाता है। उसी सेठ ने श्री भोमिया जी (ठाकुर साहब श्री सायब सिंह पिचानोत) का दूसरा मंदिर हाथरस में जाकर बनवाया जो कि हाथरस में घंटा घर के पास "ठाकुर श्री सायब सिंह जी पिचानोत (भोमिया जी) मन्दिर" के नाम से जाना जाता हैं।

श्री भोमियाजी महाराज की मान्यता सभी जगह फैलने के साथ ही दूर दूर से भक्त गण आने लगे तो पिचानोत राजपूतों ने राजपूत समाज के 16 बीघा जमीन के शमशान घाट को स्थायी रूप से बंद करके उस जगह पर बगीचा बना दिया। हर वर्ष पीपल पूर्णिमा के दिन भोमिया जी महाराज का मेला लगता हैं। 


पंचायणोत (पिच्यानोत) कछवाहा राजपूतों के 2 ताजिमी ठिकाने -

1. शहर (सहर) - 

  • पदवी-ठाकुर, 
  • 40 घोड़ो की जागीर ,  
  • पालकी की जागीर - 1, 
  • २०००० का पट्टा , 
  • किस्म जागीर - अठमावा

2. साम्भरिया   - 

  • पदवी-ठाकुर, 
  • 8 घोड़ो की जागीर , 
  • ४००० का पट्टा , 
  • किस्म जागीर - अठमावा

पंचायणोत (पिच्यानोत) कछवाहा राजपूतों के 8 खास चौकी ठिकाने थे


  •  सहर किला SAHAR FORT -
अपने गौरवशाली अतीत और वीरतापूर्ण लड़ाइयों के लिए जाना जाने वाला सहर, जिसका नाम श्रद्धेय सहारा माताजी के नाम पर रखा गया है, बहादुर योद्धाओं की वंशावली का गवाह रहा है। 1767 ई. में रघुनाथ सिंहजी ने होल्कर युद्ध के दौरान असाधारण वीरता का प्रदर्शन करते हुए किले पर विजय पताका लहरायी।

वर्तमान सहर किले की नींव 1767 ई. में ठाकुर रघुनाथ सिंह पिचानोत द्वारा रखी गई थी। किले के अंतिम शासक जसवन्त सिंह थे, यह जयपुर साम्राज्य का प्रथम श्रेणी ठिकाना था।


पंचायणोत (पिच्यानोत) कछवाहा  PICHANOT KACHHWAHA
SAHAR FORT




                                                                सहर किले का विहंगम दृश्य 

सन्दर्भ -
१. कच्छवाहों का इतिहास - देवी सिंह मंडावा 
२. नाथावतों का इतिहास - हनुमान शर्मा   
३. आमेर का इतिहास  

  

                                                                                                                       

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"