आलणोत कछवाहा

 आलणोत कछवाहा (जोगी कछवाहा)


आमेर रियासत के 10वें महाराजा कुंतलदेव जी कछवाहा के चौथें पुत्र आलण सिंह जी के वंशज 'आलणोत' कहलाये। आलणोत शाखा कछवाहों की प्राचीन शाखाओ में से एक है इन्हें जोगी कछवाहा भी कहा जाता है

आलणोत कछवाहा (जोगी कछवाहा) ALNOT - JOGI KACHHWAHA


महाराजा श्री कुन्तलदेव जी -

महराजा श्री कील्हणदेवजी के पश्चात आमेर की राजगद्दी पर उनके पुत्र कुन्तलजी विराजमान हुए। इनके समय में फिर से मीणों ने लूटपाट एवं अराजकता फैलाना प्रारम्भ किया। महाराजा कुन्तल जी ने बलपूर्वक मीणों को नियन्त्रण में किया अराजकता फ़ैलाने वालो की ताकत को तोड़ा तथा आक्रमण करके सुसावत मीणों के नेता भाडू को परास्त किया। इसके पश्चात मीणों ने देश के प्रति वफादारी दिखाई एवं आमेर के राजाओं की सेवा में रहने लगे। महाराजा कुन्तल जी बड़े बुद्धिमान थे तथा इन्हें सैनिक शक्ति की बजाय आत्मबल पर अधिक विश्वास था। इसी के सहारे इन्होने बड़े बड़े शत्रुओ को धूल चटायी इन्होंने कुन्तलगढ़ का निर्माण करवाया। इस किले में 'काथोलाव' तालाब और पहाड़ काटकर बनवाये गये 2 विशाल टांके है  कुन्तलजी के समय में मारोठ के गौड़ शासक पृथ्वीराज ने आमेर पर हमला किया, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली एवं पराजित होकर भाग गया। कुन्तलजी ने देवती में कुंड और मन्दिर भी बनवाये। इनके समय में मोहम्मद बिन तुगलक ने तुर्माशीरीन को परास्त करने के बाद वि. १३८४ (ई. १३२७) में आमेर पर हमला किया। तुगलक यहाँ से परास्त हुआ एवं वापस जाते समय दूर दराज के कुछ इलाके में लूटपाट करके वह अजमेर चला गया तथा वहाँ से वापस लौट गया।
कुन्तल जी बड़े दयालु शासक थे। 'क' 'ख' वंशावली में लिखा है कि उस ज़माने में मारवाड़ में भयंकर अकाल पड़ा था मारवाड़ के हजारों लोग शरण हेतु आमेर में आ गये, दयावान कुन्तल जी ने उन्हें भोजन , वस्त्र भेंट करके निवास की व्यवस्था करवायी, अकाल मिटे पीछे कमाकर खाने योग्य आर्थिक सहायता देकर विदा किया। ऐसा करने से महाराजा कुन्तल जी की कीर्ति अमर हो गयी 
कुन्तलजी की देवती के कुंड में स्नान एवं ध्यान करते समय डूबने से मृत्यु हुई ऐसा मुन्शी देवीप्रसादजी ने लिखा है। लोक मान्यताओ के अनुसार उन्होंने देवती में प्रभु भक्ति में तन्मय होकर समाधि द्वारा प्रभु को अपना जीवन समर्पित किया था। इनकी महारानी लाड कंवर थी जो प्रभु की बड़ी भक्त थी। वे कुन्तल जी की मृत्यु पर आमेर में सती हुई। 


महाराजा कुन्तल देव जी आमेर MAHARAJA KUNTAL DEV JI AMER


महाराजा कुन्तलजी के छः रानियाँ थीं जिनसे इनके १३ पुत्र हुए -
  • (१) जूणसिंह जी - बड़े पुत्र थे जो कि आमेर के महाराजा बने।
  • (२) हमीर सिंह जी -  इनके वंशज "हमीर दे के कछवाहा" ( हम्मीर पोता ) भी कहलाते है। इन्हें जागीर में जोबनेर मिला था। अब इनका ठिकाना दूणी है और ये अपनी नख के नाम से "गोगावत" भी कहलाते हैं। नेणसी ने लिखा है कि इनकी संख्या बहुत है। ये आमेर और नराणा में सेवारत थे।
  • (३) बड़सिंह या भड़सिंह -  इनके वंशज भाखरोतकीतावत कछवाहा हैं। इन्हें चाकसू मिला था जहाँ इन्होंने जौहर भी किया था। 
  • (४) आलणसिंह - इनके वंशज आलणोत कछवाहा (जोगी कछवाहा) हैं। इन्हें जागीर में कालख मिला था । इन्होंने अपने नाम पर आलणपुर बसाया। इनका विस्तार से वर्णन आगे दिया गया गया है
  • (५) जीतमाल - इनके वंशज नापावत कहलाते है। इन्हें जागीर में कोटपहाड़ मिला था। 
  • (६) तोग सिंहजी - इनके वंशज टोगा (तोगा) का कछवाहा कहलाते है। इनका मुख्य ठिकाना सेसवाली है। 
  • (७) गोपाल सिंहजी - इन्होंने शिकार में रोझ के भरोसे बछड़ी मार दी। तब इनके भाइयों ने इन्हें जात बाहर निकाल दिया। तब से ये जात बाहर ही रहे एवं पृथक हो गये। इनके वंशज मेवों में हैं। 
  • (८) महलण सिंहजी  
  • (९) भोज सिंहजी 
  • (१०) बाघ सिंहजी 
  • (११) बलभद्र सिंहजी  
  • (१२) बाल सिंहजी जी 
  • (१३) राज सिंहजी ।

आलणोत कछवाहा -

आमेर के महाराजा कुंतलजी के चौथें पुत्र आलण सिंह जी के वंशज आलणोत कहलाये। आलण सिंह जी ने अपने पिता महाराजा कुन्तल देव जी के साथ रह अनेक युद्ध अभियानों में वीरता दिखलायी मीणों के उत्पात को शांत किया, पृथ्वीराज गौड़ के आक्रमण को विफल करने में पिता के सहभागी रहे, तुगलक के आक्रमण को रोकने में भी अपनी भूमिका निभायी इनकी एक तड जोगी कछवाहा है। कुन्तल जी के द्वारा इन्हें कालख जागीर में मिला था। कालान्तर में आमेर महाराजा पृथ्वीराज जी के पुत्र जगमाल जी ने आलनोत कछवाहों पर हमला किया। बोराज में युद्ध हुआ, लम्बा संघर्ष चला जिसमें आलणोत परास्त हुए। फिर एक और युद्ध में परास्त होने पर कालख पर जगमालजी का अधिकार हो गया। तब से ही जगमाल जी के वंशज खंगारोत कछवाहों का इन महत्वपूर्ण ठिकानों पर शासन हो गया। इसके पश्चात आलणोत कछवाहों ने जाकर वर्तमान सवाईमाधोपुर के पास आलणवास (आलणपुर) बसाया एवं वहां अपना शासन स्थापित किया। कालान्तर में आलनोत कछवाहा मध्यप्रदेश की तरफ भी चले गये थे जहाँ इन्होने 1778 ई. में मैहर (महियर) रियासत की स्थापना की थी।

इनके एक वंशज जोगी (संत) हुए, लम्बे समय तक तपस्या की। उन्होंने बाहरी आक्रमण के समय अपने राज्य से बुलावा आने पर फिर से शस्त्र उठाये। इसके पश्चात योगी जीवन छोडकर वापस गृहस्थ में आ गये। इसलिए इनके वंशज "जोगी कछवाहा" कहलाए। 
रामदास जी वणवीर का जोगी कछवाहा मिर्जा राजा जयसिंह जी आमेर के प्रमुख सरदारों में थे। वि.स. १८०७ वैशाख वदी १३ को दीपसिंह के छोटे भाई हठीसिंह आलनोत (जोगी कछवाहा) मनोहरपुर के युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। प्रसिद्ध सुठालिया के ठाकुर मेहताब सिंहजी भी इसी वंश में हुए
वर्तमान में जोगी कछवाहा झाझीलाल बाडी, खुटेटों, बासडी आदि ठिकानों में बसे हुए हैं। दौसा , करौली, सवाई माधोपुर जिलों में इनके ठिकाने है। भांडारेज आदि बड़े ठिकानों में भी इनकी हवेलीयाँ है मध्यप्रदेश में इनकी एक रियासत मैहर (महियर) नाम की थी। जिसके आस पास के क्षेत्र में भी ये निवास करते है।

महियर के कछवाहा-
कालान्तर में आलनोत कछवाहा मध्यप्रदेश की तरफ चले गये थे जहाँ इन्होने 1778 ई. में मैहर (महियर) रियासत पर अपना शासन स्थापित किया। यह भूमि इन्हें ओरछा महाराजा द्वारा प्राप्त हुई थी। जिसका विस्तार कर इन्होने मैहर रियासत की स्थापना की थी। मध्य प्रदेश में मैहर (महियर) राज्य पर आलनोत कछवाहा (जोगी कछवाहों) का शासन था। मध्य प्रदेश में मैहर (महियर) राज्य आलनोत कछवाहा (जोगी कछवाहों) का था, भारत में विलय तक यहाँ शासन चलता रहा

MAIHAR STATE मैहर रियासत



आलणोत कछवाहों का पीढी क्रम इस प्रकार है -

आलण सिंहजी (आलणोत खांप के पितृ पुरुष) महाराजा कुन्तलदेव जी महाराजा कील्हणदेव जी महाराजा राज देवजी महाराजा बीजल देवजी महाराजा मलैसी देव महाराजा पज्जवन देव महाराजा जान्हण देव महाराजा हणू देव महाराजा कांकल देव महाराजा दुल्हेराय जी (ढोलाराय) ⇐महाराजा सोढ देव जी ⇐ महाराजा ईश्वरदास जी (ईशदेव जी)




सन्दर्भ -
१. कच्छवाहों का इतिहास - देवी सिंह मंडावा 
२. नाथावतों का इतिहास - हनुमान शर्मा 

                                                                                                                            

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"