कमधज वीर कल्ला जी राठौड़ की शौर्य गाथा ( चित्तौड़ का तीसरा साका )

कमधज कल्ला राठौड़

कल्लाजी राठौड़ KALLA JI RATHORE - CHITTAURGARH


चित्तौड़ दुर्ग के द्वितीय प्रवेश द्वार 'भैरव पोल' से भीतर प्रवेश करते ही दर्शन होते है दो महिमामयी देवस्थानो (छतरीयो) में स्थापित तेजस्वी प्रतिमाओ के, वे दोनों प्रतिमाऐ है जयमलजी मेड़तिया एवं कल्लाजी राठौड़ की जिनके दर्शन मात्र से ही शरीर का रोम-रोम दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। वहां का एक-एक पत्थर ही उस गौरवशाली इतिहास का स्मरण करवा देता है जो 500 वर्षों से उस इतिहास का साक्षी बना हुआ है उस इतिहास का स्मरण होते ही रोंगटे खड़े हो जाते है और गर्व की अनुभूति होती है कि इस वीर भूमि राजस्थान की पावन धरा पर ऐसे राजपूत योद्धा हुए जो इसी धरती माँ के लिए रणभूमि में सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। 

KALLA JI RATHORE AUR JAIMAL JI MERTIYA KI CHHATRIYAA, CHITTAURGARH

यह वीर गाथा है कल्लाजी राठौड़ की जिनकी जन्मस्थली मारवाड़ और कर्मस्थली (वीरगति तक) मेवाड़ रही 

कल्ला जी राठौड़ का जन्म श्रावन शुक्ल अष्टमी वि.स. 1601 (दुर्गाष्टमी) के दिन सामियाना गांव (मेड़ता) में हुआ। आप मेड़ता रियासत के राजा राव जयमलजी के छोटे भाई अचल सिंहजी के पुत्र थे। आपकी माता का नाम श्वेत कंवर था। आप प्रसिद्ध कृष्ण भक्त मीराबाई के भतीजे थे। आपका बचपन का नाम केसर सिंह था।कल्ला जी अपनी कुलदेवी नागणेची माताजी के अनन्य भक्त रहे, कुलदेवी की आराधना करते हुए योगाभ्यास कर योग में पारंगत हुए। इसी के साथ औषधि विज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की और कुशल चिकित्सक के गुणों से सुशोभित हुए। आपके गुरू प्रसिद्ध योगी भैरव नाथ थे।

जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र राव दूदा ने मेड़ता पर शासन स्थापित किया था और तभी से मेड़ता पर राव दूदाजी के वंशज "मेड़तिया राठौड़ो" का शासन रहा था। यह घटना उस समय की है जब मेड़ता के राजा राव जयमल जी मेड़तिया थे।

मेड़ता पर अकबर का आक्रमण 

  मेड़ता पर अकबर ने भारी सैन्यबल के साथ चढ़ाई की, भीषण युद्ध हुआ और मेड़ता के राजपूत रणबांकुरो ने युद्ध में विशाल मुगल सेना से जबरदस्त युद्ध किया, अकबर की सेना विशाल थी और मेड़ता छोटी रियासत थी अंत में अकबर के मेड़ता पर अधिकार हो जाने पर राव जयमल जी मेड़ता को छोड़ कर मेवाड़ चले जाते हैं। उसी समय कल्लाजी राठौड़ भी जयमल जी के साथ मेवाड़ प्रस्थान करते है। 


धन्य जननी, जनम्यो कुंवर कल्ला राठौड़ ।

आन बान पर घर छोड्यो, आयो गढ़ चित्तौड़ ।।


मेवाड़ में उस समय महाराणा उदय सिंहजी का शासन था महाराणा उदय सिंह जी द्वारा जयमल जी का बड़ा सम्मान किया गया और बदनोर की जागीर प्रदान की गयी। गौरतलब है कि जयमल जी की बहन फूल कँवर मेवाड़ में आमेट ठिकाने के पत्ताजी चुण्डावत के साथ ब्याही गयी थी।

महाराणा द्वारा वागड़ क्षेत्र में कल्ला जी राठौड़ को रणेला की जागीर प्रदान की जाती है। कल्ला जी राठौड़ दस्यु गमेती पेमला के आंतक से वहां की प्रजा की रक्षा करते है और इन कार्यों से कल्लाजी को छप्पन धरा के राव की उपाधि प्राप्त होती है। 

कल्ला जी राठौड़ का विवाह शिवगढ़ के कृष्णदास चौहान की पुत्री कृष्णा कंवर के साथ तय हो जाता है। उधर अकबर मेवाड़ पर चढ़ाई कर देता है कल्लाजी के विवाह के दिन ही युद्ध के लिए महाराणा का बुलावा आने पर जल्दबाजी में रस्म अदा कर कृष्णा कंवर को वापस लौटने का वचन देकर कल्लाजी सेना सहित चित्तौड़गढ़ की ओर प्रस्थान कर देते है। 


मेवाड़ पर अकबर का आक्रमण 

 मेवाड़ के राजपूत सरदारों की सलाह पर महाराणा उदय सिंह चित्तौड़गढ़ दुर्ग का जिम्मा रावत पत्ता जी चूंडावत और राव जयमल जी मेड़ता को सौंप कर स्वयं परिवार समेत पहाड़ी जंगलों की तरफ प्रस्थान कर जाते है। फिर युद्ध के पहले की तैयारियां प्रारम्भ हो जाती है मेवाड़ सेना द्वारा दुर्ग का सुरक्षा घेरा मजबूत किया जाता है सैन्य साजो सामान बढ़ाया जाता है सैनिक प्रशिक्षण करवाये जाते है किले के परकोटे को मजबूती दी जाती है 22 अक्टूबर सन् 1567 ई. (सम्वत १६२४ ई.) को अकबर चितौड़गढ दुर्ग पर मुगल सेनापति बख्शीश के नेतृत्व में घेरा डलवा देता है। अकबर छल कपट कूटनीति का प्रयोग भी करता है और जयमल जी को संदेश भेजता है कि आप हमारे साथ मिल जाओ आपको मेड़ता वापस सौप दिया जायेगा। लेकिन जयमल जी अकबर को आक्रामक स्वर में जवाब देते हुए ऐसे सभी प्रस्तावों को ठुकरा देते है। कविवर आसिया जी ने इस घटना के लिए जयमल के मुख से कहा है कि -


केवी नूं गढ कूंचियां, सूंपै छौड़ सरम्म।

 मुख ज्यांरा दीठां मिटै, धर रजपूत धरम्म।।

पण लीधौ जैमल पत्ते, मस्तक बांधै मौड़ ।

 सिर साजै सूंपां नहीं, चकता नूं चित्तौड़।।


अकबर पुनः प्रलोभन देता है कि आपको मेड़ता के साथ नागौर एवं आपके द्वारा मांगे जाने वाला हर एक परगना दिया जायेगा, बस आप मेवाड़ का साथ छोड़ दीजिये। यह सुनकर जयमल जी जवाब देते है कि -

भूख न मेटे मेड़तो, न मेटे नागौर

रजवट भूख अनोखड़ी, मर्या मिटे चित्तौड़ ।।


अकबर की सेना द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर महीनों तक घेरा डाले रखा गया। जब महीनों तक मुगल सेना चित्तौड़ दुर्ग का बाल भी बांका नही कर पायी तो अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण को असफल होता देख कर बारुदी सुरंग का निर्माण करवाया जाता है। इसी बीच अकबर द्वारा एक ही रात में दुर्ग के दक्षिण दिशा में सोने की मोहरें देकर प्रसिद्ध कृत्रिम पहाड़ी 'मोहर मंगरी' का निर्माण करवाया जाता है।

बारूदी सुरंग द्वारा बार-बार दुर्ग के परकोटे को क्षति होती है लेकिन दिन में क्षति होने के बाद रात्रि के समय मेवाड़ के राजपूतों द्वारा फिर से मरम्मत करवा ली जाती। 15 दिसंबर 1567 ई. को बारुदी सुरंग द्वारा दुर्ग की एक बुर्ज को क्षति हो जाती है। रात्रि के समय राव जयमलजी बुर्ज का निरीक्षण कर रहे होते है और अकबर का ध्यान चला जाता है कि एक योद्धा निरीक्षण कर रहा है उसी समय अकबर मौके का लाभ उठाते हुए मोहर मंगरी के ऊपर से अपनी संग्राम नामक बंदूक से जयमल जी पर निशाना साधता है यह गोली जयमल जी के पैर में लग जाती है और जयमल जी घायल हो जाते है। 



चित्तौड़ का तीसरा साका 

लम्बे समय तक घेरा रहने से दुर्ग में रसद पानी की कमी आ जाने के कारण दुर्ग में जीवन यापन कठिन हो जाता है। अंत में राजपूत सरदार साके का निर्णय करते है यह साका चित्तोड़गढ़ के तीसरे साके के नाम से इतिहास में दर्ज हुआ राजपूत सरदारों ने केसरिया करने तथा क्षत्राणियों द्वारा जौहर करने का फैसला लिया गया।  और फिर मरण मारण की घड़ी आ जाती है किले के राजपूत योद्धाओ ने दो रात और एक दिन तक लगातार लोहा लेकर दुश्मन को दंग कर दिया। युद्ध का अंतिम दिन आ गया, क्षत्राणियो के जौहर के नेतृत्व का सौभाग्य राठौड़ी रानी फूल कंवर को प्राप्त होता है। और दिन आ जाता है युद्ध के अंतिम संग्राम का, क्षत्राणियो ने अपने सतीत्व में जीवित अग्नि स्नान (जौहर) किया फिर राजपूत रणबांकुरो ने जौहर को नमन कर राख को शीश पर लगा कर केसरिया किया।   

युद्ध का बिगुल बजाया गया, चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दरवाजे खोल दिया गये, राजपूत सेना मुगलों पर टूट पड़ी। सेनापति राव जयमल मेड़तिया के पैर में गोली लगने से वे पहले से ही घायल हो गए थे लेकिन उनकी युद्ध करने की इच्छा प्रबल थी यह देख कर 24 वर्ष के कल्ला जी राठौड़ ने अपने काका जयमल मेड़तिया को अपने कंधो पर बैठा लिया घोर संग्राम प्रारम्भ हुआ कल्लाजी के कन्धो पर बैठे जयमलजी अपने दोनों हाथों में तलवार धारण करते है और कल्लाजी भी दोनों हाथों में तलवारे धारण कर मुगलों पर टूट पड़ते है काका भतीजा मिलकर मुगलों की लाशो के ढेर लगा देते है। 


जयमल भुजा उठायों, पंगु जबे पायो।

अनुपम रूप चतुर्भुज, शत्रुन् पे छायो।।

दुय जयमल कर जेम दुय, कल्ला कर करवाल । 

बढ्या चतुरभुज रूप बण, बिंहूं कमधज बिकराऴ ।।


हाथी पर बैठा अकबर जब युद्ध का नजारा देखता है तो जयमल जी एवं कल्लाजी को इस तरह भीषण रक्तपात करते देख काँप उठता है। अकबर ने भारत के हिन्दू देवी देवताओं के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था। कल्ला जी राठौड़ को देख उसके मुंह से सहस ही निकल पड़ता है कि यह कोई चार हाथ वाले हिन्दू देवता ही युद्ध भूमि में लड़ रहे हैं। 


KALLA JI RATHORE - CHATURBHUJA AVTAR. CHITTAURGARH KA TISRA SAKA -JAUHAR, KESRIYA

ज्यादा जख्मी हो जाने पर युद्धभूमि में मौक़ा देख कर कल्ला जी ने जयमल जी को नीचे उतारा और उनके गहरे जख्मों पर दवा दारू करने लगते है।  तभी एक मुगल सैनिक पीछे से वार कर कल्लाजी का शीश काट देता है। और फिर प्रारम्भ होता है इतिहास का वो दृश्य जो स्वर्ग के देवताओं के लिए भी दुर्लभ होता है इस दृश्य को देख कर मुगल सेना में हड़कम्प मच जाता है बिजली की तरह मस्तक विहीन वीर कल्लाजी राठौड़ का धड़ मुगल सेना पर टूट पड़ता है । कल्लाजी का मस्तक विहीन धड़ हाथ में खांडा (तलवार का एक रूप ) चलाते हुए सेकड़ो मुगलों का विनाश करता हुआ आगे बढ़ता है और मुगल सेना त्राहि त्राहि करती है -

खांडो खड़के रे वाह वाह कल्लाजी कड़के रे 

KALLA JI RATHORE
वीर शिरोमणि कल्लाजी राठौड़ 


मुगल सेना का बड़े स्तर पर विनाश करके कल्ला जी राठौड़ अपना वचन पूरा करने के लिए बिना सिर के धड़ द्वारा 180 किमी दूर पत्नी कृष्णा कंवर के पास जा पहुंचते है और कृष्णा कंवर को दिए वचन को पूरा करते है पहले से ही युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त कल्लाजी राठौड़ का धड़ कृष्णा कंवर के समक्ष शांत हो जाता है। पतिव्रता वीरांगना कृष्णा कँवर कल्लाजी राठौड़ के देह के साथ जीवित अग्नि स्नान कर लेती है। जिन्हें स्वयं नागनेची माता आशीर्वाद प्रदान करती है।


माँ सती हुई कृष्णा कँवरी, अग्नि कियो बलिदान रे।

पल में प्रगटी नागणेच्या जी, कुलदेवी राठौड़ा रे।।

SATI MATA KRISHNA KANWAR MANDIR, RANELA (KALLA JI RATHORE)

     कल्ला कीरत रावले , हेलो कोस हजार। 

बांव पकड़ बैठा करो, अरवडिया आधार ॥ 

पावड़िया पत्तो लड़े, जयमल महला बीच 

राय आंगणे कल्लो, लड़े कैसर हंदा कोच ।। 

कल्ला लड़े कबाण सुं, माथे जस रो मोड़। 

छपना में छोला करे, राजकुली राठौड़ ॥ 

प्याला केसर पीवणा सांझ पड़यां सुविधाण 

मुआ उगावे मानवी, काठा रगं कल्याण ।।


24 फरवरी 1568 को कल्ला जी राठौड़ को वीरगति प्राप्त हुई थी। 24 फरवरी का दिन कल्ला जी राठौड़ के बलिदान दिवस के रुप में मनाया जाता है। लोकजन में चार हाथ वाले देवता के रूप में कल्लाजी राठौड़ प्रसिद्ध है  आज पूरे राजस्थान ,पश्चिमी मध्यप्रदेश तथा उत्तरी गुजरात के अनेक स्थानों पर उनके मंदिर बने हुए है और उनकी इन क्षेत्रों में बहुत मान्यताए है।  चितौड़ दुर्ग में भैरव पोल जहां उनका सिर कटा वहां पर छतरी बनी हुयी है  वहां हर साल आश्विन शुक्ला नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है  दूर दूर से लोग कल्लाजी के धाम पर मन मे आस्था लिए आते है जिनकी मनोकामनाए पूर्ण होती है। कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है।


SHESH NAAG AVTAR SHRI KALLA JI RATHORE, CHITTAURGARH KA TISRA SAKA


" जठै लड़या जयमल-कल्ला, छतरी छतरां मोड़। 

कमधज कट बणिया कमंध, गढ़ थारै हित चित्तोड़"




चित्तौड़ दुर्ग स्थित  श्री काली कल्याण पीठ कल्लाजी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है यहाँ दूर दूर से भक्तगण मन में श्रध्दा लिए आते है भक्तगणों की मनकामनाये पूर्ण होती है ब्रह्मलीन पीठाधीश्वर श्री प्रेम शंकर शर्मा जी कल्लाजी के अनन्य भक्त रहें जिन्हें स्वयं कल्लाजी ने सेवक रूप में गद्दी पर आसीन किया था आजीवन कल्लाजी की सेवा का सौभाग्य प्राप्त करने वाले प्रेम शंकर शर्मा जी कल्लाजी के आशीर्वाद से गादी पर बैठ कर सभी प्रकार के रोगों का तलवार के झाड़े से उपचार किया करते थे। असाध्य रोगों के मरीजों का भी यहाँ उपचार हुआ है। केवल देश से ही नही अपितु विदेशों से भी आये हुए भक्तों के असाध्य रोगों का ईलाज कल्लाजी के आशीर्वाद से हुआ है 


SWARGIYA PUJNIYA SHRI PREM SHANKAR SHARMA JI - KALLA JI DHAM , CHITTAURGARH DHAM

महाराष्ट्र के पुराने समाचार पत्र में कल्लाजी राठौड़ के चमत्कारों के सन्दर्भ में प्रकाशित समाचार  

पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय जसवंत सिंहजी जसोल कल्लाजी की गद्दी से आशीर्वाद लेते हुए 



कल्लाजी जन्मोत्सव के एक दिवस पूर्व की संध्या को कल्लाजी धाम चित्तौड़गढ़ का मनमोहक दृश्य -


           साभार :-       

ठा.सा. शम्भू सिंह जी रणेला
 ठा.सा. जितेन्द्र सिंह जी रायकी
ठा.सा. महेन्द्र सिंह जी बिछीवाड़ा (राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय कल्लाजी सम्प्रदाय)
 डाॅ. महेन्द्र भाणावत (इतिहासकार)
कुं.देवेन्द्र सिंह सारंगदेवोत ठि. उदय सिंह जी की भागल
 



                                                                                                                            

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"