महान व्यक्तित्व के धनी - महारावल संग्राम सिंह नाथावत सामोद
नाथावतों के 9 ताजीमी और 95 खास चौकी ठिकाने थे। इनमें चौमू और सामोद, दो प्रसिद्ध व जयपुर रियासत के सबसे बड़े प्रभावशाली ठिकाने थे। महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा के बाद से नाथावतों का इतिहास ही जयपुर का इतिहास रहा है, इस इतिहास के निर्माण में चौमूँ - सामोद के साथ-साथ रायसर, मोरीजा, मुंडोता, डूंगरी, कलवाडा, रेणवाल, भूतेड़ा, अजयराजपुरा आदि के नाथावतों का भी बड़ा योगदान रहा है। चौमूँ के ठाकुर देवीसिंह जी अजयराजपुरा से गोद आये थे, देवीसिंह जी के दस पुत्र हुए इनमें सबसे बड़े जयसिंह को सामोद गोद भेजा गया था, जहां वे रावल संग्राम सिंह के नाम से जाने गये। संग्राम सिंह जी का जन्म 1900 ईस्वी में दीपावली के दिन हुआ था, संग्राम सिंह जी रियासती काल के अन्तिम चरण के एक सुयोग्य सुशिक्षित और उदार सरदार थे।
संवत् 1957 की कार्तिक बुदी अमावस्या (दीपावली) को 'जयसिंहजी' का जन्म हुआ, आप सामोद गोद जाने के बाद लोक प्रसिद्धि में 'संग्रामसिंहजी' नाम से विख्यात हुए। सामोद के रावल फतेह सिंहजी के कोई पुत्र नही था, उनकी मृत्यु के पश्चात संग्राम सिंहजी को सामोद ठिकाने द्वारा गोद लिया गया था।
महारावल संग्राम सिंह का प्रथम विवाह मेवाड़ के सोलह प्रमुख उमरावों में से एक सलूम्बर के रावत ओनाड़सिंह जी चुण्डावत की पुत्री 'पद्मकुँवरि' (चूंडावतजी / कृष्णावतजी) के साथ हुआ था।
द्वितीय विवाह नेपाल के तत्कालीन महाराजा सरचन्द्र शमशेर जंगबहादुर राणा की पौत्री व सेनापति सीनियर कमांडिग जनरल मोहन समसेर जंगबहादुर राणा की पुत्री राजकुमारी सीसोदणीजी के साथ 1929 ईस्वी में हुआ, इसी विवाह से रावल संग्राम सिंह जी को पुत्र लाभ प्राप्त हुआ था।
संग्राम सिंहजी के शिक्षक पुरोहित रामनिवास जी एम.ए. योग्यता धारक थे। संग्राम सिंहजी की सातवें दर्जे तक ठिकाने में ही शिक्षा की व्यवस्था हुई, अनन्तर महाराजा हाईस्कूल जयपुर में ऐंट्रेंस पास किया और बी. ए. तक यहीं योग्यता प्राप्त की। बाद में बैरिस्टरी सीखने के लिए दो बार विलायत गए। आप युद्ध कौशल में भी पारंगत थे।
एकीकरण से पहले कई वर्षो तक आप सीगा मेम्बर रहे। आपको जयपुर रियासत के चीफ कोर्ट के जज के पद पर आसीन होने का गौरव प्राप्त हुआ। 1920 में सामोद ठिकाने का प्रशासनिक नियत्रंण संभालने के बाद अपनी जागीर का बड़ी कुशलता से प्रबन्ध किया।
जयपुर महाराजा सवाई माधवसिंहजी द्वितीय की मृत्यु होने पर आप जयपुर राज्य के शासन विभाग में नियुक्त हुए। साथ ही अपने ठिकाने सामोद के शासन संचालन को भी स्वयं देखते थे। महारावल संग्रामसिंह सामोद, महाराजा सवाई मानसिंह जी द्वितीय के समय में जयपुर रेवेन्यू मिनिस्टर (राजस्व मंत्री) रहे थे। आपको दरबार की जुबली पर महारावल का व्यक्तिगत खिताब प्राप्त हुआ था।
महारावल संग्राम सिंह एकीकरण के पश्चात 1952 के प्रथम आम चुनाव में आमेर-B विधानसभा क्षेत्र से स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़कर बड़ी जीत के साथ प्रथम विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी महारावल संग्रामसिंह को प्रथम विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर (Protem speaker) बनने का गौरव प्राप्त हुआ। राजस्थान के प्रथम प्रोटेम स्पीकर नियुक्त होकर आपने पद को सुशोभित किया। राजस्थान के राजप्रमुख महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय ने आपको पद पर नियुक्त किया था। आपने तीन दिन तक विधानसभा की कार्यवाही जिस संजीदगी और गरिमा के साथ चलाई थी, उसके लिए तब "स्टेटमैन" जैसे अंग्रेजी अखबार ने आपकी प्रशंसा में टिप्पणी की थी कि महारावल संग्राम सिंह ने सदन का संचालन ऐसे किया, जैसे वह जीवन भर यही काम करते आ रहे हो।
महारावल संग्राम सिंह जी प्रजारंजन में लीन रहने वाले शासक थे, अपने ठिकाने सामोद में शिक्षा के प्रसार पर विशेष ध्यान दिया, विशेष कर विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दिया करते थे। सामोद ठिकाना जयपुर रियासत में चोमू ठिकाने के बाद दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना था। सामोद के शासकों का प्रजा के प्रति सदैव प्रेम रहा। यहाँ के शासकों ने प्रजाहित के कार्यों पर सदैव ज्यादा ध्यान दिया। नाथावत शाखा के प्रवर्तक पुरुष राव नाथाजी का प्रजा प्रेम इतना अधिक था कि जब नाथाजी युद्ध आदि के कारण ठिकाने से बाहर होते तो प्रजाजन कहते कि - हे नाथा, थारे बिना म्हें अनाथा। इसी परम्परा को आगे भी यहाँ के शासकों ने बखूबी निभाया। प्रजाजन का प्रेम एवं आशीर्वाद सदा ही यहाँ के शासकों पर बना रहा। प्रजातंत्र आने पर यहाँ के शासकों के प्रति सदियों से निरंतर चला आया जनता का प्रेम चुनावों में पूरा दिखायी दिया। महारावल संग्राम सिंह को 1952 के चुनावों में जनता ने भारी मतों से जीताकर विधानसभा भेजा और 1967 के चुनावों में रावल राजेश्वर सिंहजी सामोद को भी भारी मतों से जीता कर जनता ने विधानसभा भेजा। नाथावतों के ताजिमी ठिकाने बाघावास के कुंवर तेज सिंहजी नाथावत भी 1952 के चुनावों में आमेर A विधानसभा क्षेत्र से भारी मतो से विजयी होकर विधानसभा गये थे जो कि नाथावत सरदारों के प्रति जनता के अथाह प्रेम के बड़े उदाहरण है। प्रथम आम चुनावों में चयनित 54 राजपूत विधायको में से 2 विधायक सामोद एवं बाघावास के प्रमुख नाथावत सरदार ही थे। जो की आमेर A एवं आमेर B विधानसभा क्षेत्रों से विजयी हुए थे। जिनकी विधानसभा में अपनी अनूठी पहचान रही।
विश्वप्रसिद्ध सामोद राजमहल एवं घाटी में स्थित बाहरी प्रवेश द्वार,
पर्वत पर स्थित सामोद का प्राचीन दुर्ग एवं परकोटा
महारावल श्री संग्राम सिंहजी के उत्तराधिकारी रावल श्री राजेश्वर सिंह हुए। ई. सन् १९६७ के चुनाव में सामोद के रावल राजेश्वरसिंह विधायक बने। श्री राजेश्वर सिंह के निधन के बाद सामोद ठिकाने के उत्तराधिकारी वर्तमान रावल श्री राघवेन्द्र सिंह है, जिनका पर्यटन व्यवसाय में योगदान उल्लेखनीय है।
सन्दर्भ -
- नाथावतों का इतिहास-हनुमान शर्मा
- कछवाहों का इतिहास-देवी सिंह मंडावा
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