बांधनवाड़ा युद्ध के महानायक - महारावत महा सिंहजी सारंगदेवोत (BATTLE OF BANDANWARA)

 महारावत महा सिंहजी सारंगदेवोत



महारावत महा सिंहजी सारंगदेवोत

 "मोटी मूंछों सीसोदियों, मोटो मरद महारावत ।
 मारयो खान रणबाज ने, महासिंह मानावत"।।
"सिरमोर सारंगदे, राखी लाज राण संग्रामसी ।
समय रजक पलटसी, पण रेसी कीरत मानसुत"।।


राजपुताना इतिहास के एक ऐसे अप्रतीम योद्धा जिन्होंने युद्ध में विजय को प्राप्त करने के पश्चात उसी रणभूमि में वीरगति को भी प्राप्त किया (BATTLE OF BANDANWARA)

मेवाड़ के महाराणा लाखा के पौत्र एवं रावत अज्जा जी के पुत्र सारंगदेव जी सिसोदिया "सारंगदेवोत शाखा" के पितृ पुरुष हुए, जिनके वंश में मान सिंहजी सारंगदेवोत का मेवाड़ के युद्ध अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान रहा, इन्ही मान सिंहजी के पुत्र रूप में महा सिंहजी सारंगदेवोत का जन्म १६५० ई में हुआ जो बाल्यकाल से ही अद्भुद प्रतिभा के धनी रहे जो बांधनवाड़ा रणभूमि में विजय प्राप्ति के पश्चात वीर गति को प्राप्त कर इतिहास में अमर हो गये। वर्तमान में महा सिंहजी बाबा नाम से लोकदेवता के रूप में राजस्थान में पूजे जाते है। 


बांधनवाड़ युद्ध के महानायक - महारावत महा सिंहजी सारंगदेवोत 

 मुगल बादशाह बहादुरशाह के वज़ीर ज़ुल्फिकार खां ने मेवाड़ के पुर, मांडल आदि परगने मेवाती रणबाज़ खां को व मांडलगढ़ का परगना नागौर के राव इंद्रसिंह को दे दिया। राव इंद्रसिंह जानते थे कि मेवाड़ के परगने लेने का सीधा अर्थ मेवाड़ से दुश्मनी मोल लेना है, इसलिए उन्होंने ये परगने लेने से इनकार कर दिया।

बादशाह का बेटा शहज़ादा अज़ीमुशान वज़ीर, ज़ुल्फिकार खां के खिलाफ़ था, इसलिए उसने मेवाड़ को संदेश भिजवाकर समस्त वृतांत के सन्दर्भ में अवगत करवाया।

बहादुरशाह के एक और बेटे शहज़ादे मुईज़ुद्दीन और वज़ीर ज़ुल्फिकार खां ने अपनी सेना बादशाह के आदेशानुसार मेवाड़ के परगनों पर कब्ज़ा करने के लिए रणबाज़ खां के नेतृत्व में भेज देते है। 

रणबाज़ खां सेना सहित मेवाड़ की और कूच करता है। गुप्तचरों द्वारा महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय को पता चलते ही दरबार बुलाया जाता है और मुगल सेना को खदेड़ने के लिए सैन्य अभियान भेजने का आदेश दिया जाता है।महाराणा द्वारा इस युद्ध का नेतृत्व योद्धा महारावत महासिंह सारंगदेवोत को सौपा जाता है। महासिंह जी मुगल फौज को खदेड़ने हेतु मेनार गांव के पास रण का डेरा डालते हैं मुगल सेना के बांधनवाड़ा के रास्ते मेवाड़ की ओर बढ़ते कदम देख कर मेवाड़ की सेना बांधनवाडे के लिए कूच करती हैं।

अजमेर प्रांत के निकट बांधनवाड़े में रणबाज़ खां अपनी फौज समेत खारी नदी के तट पर डेरा डाल देता है।


महारावत महासिंह सारंगदेवोत के नेतृत्व में भेजी गयी सेना में मुख्य सरदार 

  •  रावत सूरतसिंह सारंगदेवोत (रावत महासिंह के भाई व बाठरड़े के पहले रावत साहब)
  •  रावत विक्रमसिंह सारंगदेवोत (रावत महासिंह के भाई)
  •  ठाकुर नाहरसिंह सारंगदेवोत (रावत महासिंह के पुत्र)
  •  रावत देवभान चौहान (कोठारिया)
  •  सूरजसिंह राठौड़ (लीमाड़ा)
  •  रावत देवीसिंह चुण्डावत (बेगूं)
  •  रावत मोहनसिंह मानावत
  •  डोडिया हठीसिंह
  •  पीथळ शक्तावत
  •  मधुकर शक्तावत
  •  रावत गंगदास शक्तावत (बान्सी)
  •  सूरजमल सौलंकी (रुपनगर)
  •  राजराणा सज्जा झाला द्वितीय (देलवाड़ा)
  •  ठाकुर दौलतसिंह चुण्डावत (दौलतगढ़)
  •  रावत संग्रामसिंह चुण्डावत (देवगढ़)
  •  संग्रामसिंह राणावत (खैराबाद)
  •  संग्रामसिंह (मदारिया)
  •  साहबसिंह राठौड़ (रुपाहेली)
  •  ठाकुर जयसिंह राठौड़ (बदनोर)
  •  सामन्तसिंह चुण्डावत (सलूम्बर रावत केसरीसिंह के भाई)
  •  रावत पृथ्वीसिंह चुण्डावत (आमेट)
  •  जसकरण कानावत
  •  राजा भारतसिंह (शाहपुरा)
  •  कुँवर उम्मेदसिंह (शाहपुरा)
  •  महता सांवलदास
  •  कान्ह कायस्थ (छीतरोत)


मेवाड़ी फौज मध्य मार्ग में हुरड़ा में पड़ाव डालती है और कुछ समय बाद खारी नदी को पार कर आगे बढती है।बांधनवाड़े के निकट दोनों सेनाएँ आमने सामने आ जाती है। (बांदनवाड़ा युद्ध)

मेवाड़ी फौज में पैदल, घुड़सवार, तीरंदाज़ आदि सब मिलाकर करीब 20 हजार योद्धा थे 

मुगल फौज में 5 हजार तीरंदाज़, 10 हजार घुड़सवार व लगभग 15000 पैदल मिलाकर 30000 थे 


महारावत महासिंह सारंगदेवोत ने रण उदघोष में प्रतिज्ञा स्वर में कहा था कि "रणबाज़ खां के जितने कदम मेवाड़ की तरफ़ पड़े, उतनी ज़मीन और कुँए ब्राह्मणों को संकल्प कर दूँगा" -

"जे पग लागे जाण, रण सामा रणबाज़ रा |

उद्दक पृथी अडाण, करदेसू माहव कहै ||"


मदारिया के संग्रामसिंह ने अपनी फौजी टुकड़ी को जोश दिलाते हुए कहा कि -

"मदारिया के कुल खरगोश मार खाए हैं, पर गोली लगाने और नाम पाने का मौका आज है"


कविराज श्यामलदास लिखते हैं "मेवाड़ी बहादुरों ने लड़ाई की शुरुआत में ही मुगल फौज को घेर लिया और इस कदर हावी रहे कि मुगल तीरंदाज़ दूसरी बार अपनी कमान पर तीर ही नहीं चढ़ा सके"


शनिवार, बैसाख शुक्ल सप्तमी, वि.स.1768 (14 अप्रैल 1711 ई.)

(BATTLE OF BANDANWARA)

रावत महासिंह सारंगदेवोत के नेतृत्व में मेवाड़ी फौज का सामना रणबाज़ खां की मुगल फौज से होता है इस युद्ध में महाराणा द्वारा लिखे सरदारों में बेगूं के रावत देवीसिंह चुण्डावत किसी कारण भाग नहीं ले पाए, तो उन्होंने अपने कोठारी भीमसी महाजन को भेज दिया।

तब मेवाड़ के किसी सामंत ने कहा कि "कोठारी जी, यहाँ आटा नहीं तोलना है"

ये ताना सुनकर भीमसी ने दोनों हाथों में तलवारें पकड़ी और कहा "अब देखो मैं किस तरह दोनों हाथों से आटा तोलता हूं"

इतना कहकर युद्ध की शुरुआत में ही भीमसी महाजन मुगलों पर टूट पड़े और बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।


"रावत महासिंह सारंगदेवोत का बलिदान" (MAHARAWAT MAHA SINGH SARANGDEVOT) :

भारी संग्राम के बीच रावत महासिंह सारंगदेवोत व रणबाज़ खां का आमना-सामना होता है तलवार युद्ध चलता है,  रणबाज़ खां के प्रहार से महासिंह लहूलुहान अवस्था में घायल होकर गिर जाते है। 

मुगलों की तरफ युद्ध का झुकाव हो चुका था, क्षणिक भर में ही चुनोती देते हुए रावत महासिंह अचेतन अवस्था से अचानक उठते है और रणबाज खां का सिर काट देते है और पुनः धरती की गोद में वीर गति को प्राप्त हो जाते है।


वीरगति : 14 अप्रैल 1711 ई.

तें वाही इकतार, मुगलां रे सिर माहवा |

धज वड हदी धार, सात कोस लग सीसवद ||

बान्धनवाड़ा युद्ध भूमि में मुगल सेनापति रणबाज खां का सिर काटते हुए  महारावत महा सिंहजी सारंगदेवोत

(रावत महासिंह सारंगदेवोत की वीरता पर 1711 ई. में ही 'माहवजसप्रकास' नामक रूपक लिखा गया)

मेवाती रणबाज खां अपने भाई नाहर खां व अन्य भाई बेटों समेत राजपूत फौज के हाथों कत्ल हुआ, दीनदार खां (दिलेर खां) अपनी बची-खुची फौज समेत अजमेर की तरफ भाग निकला।


मेवाड़ सेना के वीरगति पाने वाले मुख्य योद्धा :-

  •  रावत महासिंह सारंगदेवोत (कानोड़) :- बांधनवाड़े से पास ही रावत महासिंह का स्मारक स्थित है।
  •  कोठारी भीमसी महाजन (बेगूं)
  •  ठाकुर दौलतसिंह चुण्डावत (दौलतगढ़)
  •  कुँवर कल्याणसिंह चुण्डावत (दौलतगढ़)


महाराणा ने जब इस युद्ध के लिए सेना भेजी थी, तब बान्सी के रावत गंगदास शक्‍तावत ने कहा था कि आप सभी युद्ध के लिए निकलिए, हम कुछ समय बाद आते हैं। रावत गंगदास शक्‍तावत अपनी फौजी टुकड़ी समेत अजमेर के निकट पड़ाव डाल कर इंतजार करने लगे और  संध्या होने से ठीक पहले युद्धभूमि की तरफ रवाना हुए, परंतु मार्ग भटक गए और वहां पहुंच ही नहीं पाए जब मेवाड़ी फौज विजयी होकर लौट रही थी, तब रावत गंगदास मार्ग में मिल गए इस समय एक चारण ने रावत गंगदास को ताना मारते हुए एक दोहा कहा था कि

"माहव तो रण में मरे, गंग मरे घर आय"


"युद्ध में वीरता दिखाने वालों को पुरस्कार" :

  • रावत महासिंह सारंगदेवोत के बलिदान से प्रसन्न होकर उनके पुत्र रावत सारंगदेव द्वितीय को महाराणा ने कानोड़ का प्रथम श्रेणी जागीरदार बनाया व रावत महासिंह के छोटे भाई सूरतसिंह को द्वितीय श्रेणी ठिकाने बाठेड़ा की जागीर दी।
  • सलूम्बर के सामंतसिंह चुण्डावत को महाराणा ने बम्बोरा की जागीर दी।
  • बदनोर के ठाकुर जयसिंह राठौड़ को महाराणा ने एक हाथी व सिरोपाव दिया।


महारावत महा सिंह जी बाबा का देव रुप परिचय :

महारावत श्री महासिंहजी बाबा मंदिर , बान्धनवाड़ा

  • महारावत महा सिंह जी बाबा अजमेर क्षेत्र में लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। आपका मंदिर एवं स्मारक वीर गति स्थल बांधनवाड़ा (अजमेर) में स्थित है ।
  • महारावत महा सिंह जी शनिवार के दिन वीरगति को प्राप्त हुए इस कारण शनिवार का दिन पूजा अर्चना का विशेष दिन होता है जिसमें श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है।
  • महा सिंह जी बाबा के आशीर्वाद से पेट की व्याधियाँ, पाइल्स आदि रोगो का ईलाज होता है
  • मान्यता है कि जिन युवक और युवतियों के विवाह में अड़चन आ रही हो तो महा सिंह जी के आशीर्वाद से उन का विवाह जल्दी तय हो जाता है।
  • महा सिंह जी बावजी के यहां से मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु गण रात्रि जागरण, भोग प्रसाद आदि चढाते हैं। 

“कोई हलिया अमलां कोई हलिया दारूह

भुजां लाज मेवाड री सारंगदे सारूह"॥

बांधनवाड़ा युद्ध के महानायक - महारावत महा सिंहजी सारंगदेवोत



                  साभार :-           



                                                                                                                            

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'रण कर-कर रज-रज रंगे, रज-रज डंके रवि हुंद, तोय रज जेटली धर न दिये रज-रज वे रजपूत " अर्थात "रण कर-कर के जिन्होंने धरती को रक्त से रंग दिया और रण में राजपूत योद्धाओं और उनके घोड़ो के पैरों द्वारा उड़ी धूल ने रवि (सूरज) को भी ढक दिया और रण में जिसने धरती का एक रज (हिस्सा) भी दुश्मन के पास न जाने दिया वही है रजपूत।"